________________ सत्तमे एगिदियमहाजुम्मसए : पढमाइ-एक्कारसपज्जंता उद्देसगा सप्तम एकेन्द्रियमहायुग्मशतक : पहले से ग्यारहवे उद्देशक पर्यन्त द्वितीय एकेन्द्रियमहायुग्मशतकानुसार सप्तम एकेन्द्रियमहायुग्मशतक-निरूपण 1. एवं नीललेस्सभवसिद्धियगिदियेहि वि सयं / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० // 3517 / 1-11 // पंचतीसइमे सए : सत्तमं एगिदियमहाजुम्मसयं समत्तं // 35-7 // [1] इसी प्रकार नीललेश्या वाले भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्मएकेन्द्रिय शतक का कथन भी नीललेश्या-सम्बन्धी तृतीय शतक के समान जानना चाहिए। 'हे भगवन् यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं // 35 // 7 / 1-11 // // सप्तम एकेन्द्रियमहायुग्मशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक तक सम्पूर्ण // // पैंतीसवां शतक : सप्तम एकेन्द्रियमहायुग्मशतक समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org