________________ पंचमे एगिदियमहाजुम्मसए : पढमाइ-एक्कारसपज्जंता उद्देसगा पंचम एकेन्द्रियमहायुग्मशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त प्रथम एकेन्द्रियमहायुग्मशतकानुसार पंचम एकेन्द्रियमहायुग्मशतक का निर्देश 1. भवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मएगिदिया णं भंते ! कतो उववज्जति ? जहा प्रोहियसयं तहेव, नवरं एक्कारससु वि उद्देसएसु / अह भंते ! सम्वपाणा जाव सव्वसत्ता भवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मएगिदियत्ताए उपवनपुरावा? गोयमा ! जो इणठे समझें / सेसं तहेव / सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० // 35 / 5 / 1-11 // पंचतीसइमे सए : पंचमं एगिदिपमहाजुम्मसयं समत्तं // 35 // 5 // [1 प्र.] भगवन् ! भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [1 उ.] गौतम ! इनका समन कवन पौधिकशतक के समान जानना चाहिए। इनके ग्यारह ही उद्देशकों में विशेष बात यह है-- [प्र.] भगवन् ! सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्म विशिष्ट एकेन्द्रिय के रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं ? [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है / इसके अतिरिक्त शेष सब कथन पूर्वोक्त प्रौधिक शतकवत् समझना चाहिए / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरण करने लगे / 351511-11 // // पंचम एकेन्द्रियमहायुग्मशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक तक सम्पूर्ण / / ॥पैतीसवाँ शतक : पंचम एकेन्द्रियमहायुग्मशतक समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org