________________ 694] व्याख्याज्ञप्तिसूत्र .. उववातो तहेव / परिमाणं सत्तरस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणता वा / सेसं तहेव (सु० 4-14) जाब अणंतखुत्तो। [16 प्र.] भगवन् ! कृतयुग्म-कल्योजरूप एकेन्द्रिय कहाँ से पाकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [16 उ.] गौतम ! इनका उपपात पूर्ववत् समझना चाहिए / इनका परिमाण है--सत्रह, संड्यात, असंख्यात या अनन्त / शेष (सू. 4 मे 14 तक के अनुसार) पूर्ववत् यावत् अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं, यहाँ तक कहना चाहिए। 20. तेयोगकडजुम्मएगिदिया ण भंते ! करो उववज्जति ? उववातो तहेव / परिमाणं-वारस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा उववज्जंति / सेसं तहेव (सु० 4-14) जाव अणतखुत्तो। [20 प्र.] भगवन् ! योज-कृतयुग्म राशिरून एकेन्द्रिय जोब कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [20 उ.] गौतम ! इनका उपपात भी पूर्ववत् जानना। इनके प्रति समय उत्पाद का परिमाण है-वारह, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त / शेष (मू. 4 से 14 तक के अनुसार) पूर्ववत् यावत् अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, यहाँ तक कहना चाहिए / 21. तेयोयतयोयएगिदिया णं भंते ! कतो उववज्जति ? उववातो तहेब / परिमाणं-पन्नरस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा / सेसं तहेव (सु० 4-14) जाब अणंतखुत्तो। [21 प्र.] भगवन् ! योज-योजराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से ग्राकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [21 उ.] गौतम ! इनका उपपात भी पूर्ववत् है। इनके प्रतिसमय उत्पाद का परिमाण है-पन्द्रह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त / शेष सब (सू. 4 से 14 के अनुसार) पूर्वबत यावत् अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, यहाँ तक जानना चाहिए। 22. एवं एएसु सोलससु महाजुम्मेसु एक्को गमलो, नवरं परिमाणे नाणत्तं-तेयोयदावरजुम्मेसु परिमाणं चोट्स वा, संखेज्जा बा, असंखेज्जा वा, अणंता वा उबवज्जंति / तेयोगकलियोगेसु तेरस वा, संखेज्जा बा, असंखेजना वा, अगंता वा उज्जति / दावरजुम्मकडजुम्मेसु अट्ट वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा अणंता वा उववज्जति / दावरजुम्मतेयोगेसु एक्कारस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणता वा उववज्जति / दावरजुम्मदावरजुम्मेसु दस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा उववजंति / दावरजुम्मकलियोगेसु नव वा, संखेन्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा उववज्जंति / कलियोगकडजुम्मेसु चत्तारि वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा उववज्जति / कलियोगतेयोगेसु सत्त वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा ,अगंता वा उववज्जति / कलियोगदावरजुम्मे छ वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा उववज्जंति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org