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________________ 658] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र होरमाणे एगपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया तेयोया, से तं तेयोयलियोए 8 / जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया दावरजुम्मा, से तं दावरजुम्मकडजुम्मे 6 / जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे तिपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया दावरजुम्मा, से तं दावरजुम्मतयोए 10 / जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे दुपज्जवसिए, जेणं तस्स रासिस्स अवहारसमया दावरजुम्मा, से तं दावरजुम्मदावर जुम्मे 11 / जे णं रासी चउपकरणं प्रवहारेणं अवहीरमाणे एगपज्जवसिए, जे थं तस्स रासिस्स अवहारसमया दावरजुम्मा से त्तं दावरजुम्मकलियोए 12 / जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे च उपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया कलियोगा, से तं कलियोगकाजुम्मे 13 / जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अबहीरमाणे तिपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया कलियोया, से त्तं कलियोयतंयोए 14 / जे गं रासो चउक्कएणं प्रवहारेणं अवहोरमाणे दुपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अबहारसमया कलियोगा, से तं कलियोगदावरजुम्मे 15 / जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अबहीरमाणे एगपज्जवसिए, जे तस्स रासिस्स अवहारसमया कलियोगा, सेत्तं कलियोयकलियोए 16 / से तणठेणं जाव कलियोगकलियोगे / [1-2 प्र.] भगवन् ! क्या कारण है कि महायुग्म सोलह कहे गए हैं, यथा-कृल युग्मकृतयुग्म से लेकर यावत् कल्योजकल्योज तक ? [1-2 उ.] गौतम ! (1) जिस राशि में से चार संख्या का अपहार करते हुए चार शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय भी कृतयुग्म (चार) हों तो वह राशि कृतयुग्मकृतयुग्म कहलाती है, (2) जिस राशि में से चार संख्या का अपहार करते हुए तीन शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय भी कृतयुग्म हों तो वह राशि कृतयुग्मयोज कहलाती है / (3) जिस राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहृत करते हुए दो शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय भी कृतयुग्म हों तो वह राशि कृतयुग्मद्वापरयुग्म कहलाती है, (4) जिस राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहृत करते हुए एक शेष रहे और उस राशि के अपहारसमय भी कृतयुग्म हों तो वह राशि कृतयुग्मकल्योज कहलाती है, (5) जिस राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहत करते हुए चार शेष स राशि के अपहारसमय भी योज हों तो वह राशि ज्योजकृतयग्म कहलाती है। (6) जिस राशि में से चार के अपहार से अपहृत करते हुए तीन शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय भी त्र्योज (तीन) हों तो वह राशि जोजव्योज कहलाती है, (7) जिस राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहृत करते हुए दो बचें और उस राशि के अपहारसमय व्योज हों तो वह राशि योजद्वापरयुग्म कहलाती है, (8) जिस राशि में से चार से अपहृत करते हुए एक बचे और उस राशि के अपहारसमय त्र्योज हों तो वह राशि व्योजकल्योज कहलाती है, (9) जिस राशि में से चार संख्या से अपहृत करते हुए चार शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय द्वापरयुग्म (दो) हों तो वह राशि द्वापरयुग्म कृतयुग्म कहलाती है, (10) जिस राशि में से चार संख्या से अपहृत करते हुए तीन शप रहें और उस राशि के अपहारसमय द्वापरयुग्म हो तो वह राशि द्वापरयुग्मत्र्योज कहलाती है / (11) जिस राशि में से चार संख्या से अपहृत करते हुए दो बचें और उस राशि के अपहारसमय भी द्वापरयुग्म हों तो वह राशि द्वापरयुग्म द्वापरयुग्म कहलाती है / (12) जिस राशि में से चार संख्या के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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