SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2884
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचतीसइमसयाओ चत्तालीसइमसयपज्जंता सया पैतीसवें से लेकर चालीसवें शतक पर्यन्त छह महायुग्मशतक प्राथमिक * ये भगवतीसूत्र के छह महायुग्म शतक हैं--पैंतीसाँ, छत्तीसवाँ, सैतीसवाँ, अड़तीसवाँ, उनचाली सवाँ और चालीसवाँ। * इनमें एकेन्द्रिय से लेकर संज्ञी-पंचेन्द्रिय तक के महायुग्मों की उत्पत्ति (कहाँ से ?), प्रायु, गति, प्रागति, परिमाण, अपहार, अवगाहना, कर्मप्रकृतिबन्धक-अवन्धक, वेदक-अवेदक, उदयवानअनुदयवान्, उदीरक-अनुदीरक, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान-अज्ञान, योग, उपयोग, वर्णादि चार, श्वासोच्छ्वास, आहारक-मनाहारक, विरत-अविरत, क्रियायुक्त-क्रियारहित प्रादि पदों का 16 प्रकार के महायुग्मों की दृष्टि से विश्लेषण किया गया है / * पैतीसवाँ एकेन्द्रिय महायुग्म शतक है, जिसमें 16 महायुग्म और उनके स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है। इनकी जघन्य और उत्कृष्ट संख्या का भी निरूपण किया गया है। इस प्रकार पैतीसवें शतक के 12 अवान्तर शतकों में से प्रत्येक के ग्यारह उद्देशकों सहित विविध पहलुओं से एकेन्द्रिय जीवों का सांगोपांग वर्णन किया गया है। इसमें पूर्वशतकद्वय के समान अनन्तर-परम्पर, भवसिद्धिक-अभवसिद्धिक, चरम-अचरम तथा लेश्यादि विशेषणों से यक्त एकेन्द्रिय के माध्यम से भी प्ररूपणा की गई है। * छत्तीसवें शतक के अन्तर्गत 12 अवान्तरशतकों में भी प्रत्येक के ग्यारह-ग्यारह उद्देशकों में एकेन्द्रिय जीवों के विषय में प्ररूपणाक्रम के समान द्वीन्द्रिय जीवों की भी विविध पहलुओं से चर्चा की गई है। * संतीसवें शतक में भी 12 अवान्तरशतकों और प्रत्येक के 11-11 उद्देशकों में अतिदेशपूर्वक त्रीन्द्रिय महायुग्मों की प्ररूपणा है। अड़तीसवें शतक में पूर्ववत् चतुरिन्द्रियमहायुग्मों की प्ररूपणा है / * उनचालीसवे शतक में भी पूर्वशतकानुसार अवगाहना और स्थिति को छोड़कर शेष सब कथन प्राय: द्वीन्द्रिय शतक के समान असंज्ञीपंचेन्द्रिय महायुग्म के विषय में प्ररूपणा की है। * चालीसवें शतक में इक्कीस अवान्तर शतकों में संज्ञी-पंचेन्द्रिय के षोडश महायुग्मों के माध्यम से उनकी उत्पत्ति आदि का सांगोपांग वर्णन है। * संक्षेप में समस्त जीवों को विविधतानों वौर विशेषतानों का सूक्ष्म विवेचन है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy