________________ तइयाइपंचमसयपज्जंता सया : पढमाइ-एक्कारस-पज्जंता उद्देसगा तीसरे से पांचवा एकेन्द्रिय-श्रेणी-शतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त 1. एवं एएणं अभिलावणं जहेच पढम सेढिसयं तहेव एक्कारस उद्देसगा भाणियम्वा / इसी प्रकार जैसा प्रथम श्रेणीशतक कहा है, उसी प्रकार यहाँ ग्यारह उद्देशक कहने चाहिए / [1] एवं नीललेस्से हि वि सयं। [1] इसी प्रकार नीललेश्या वाले एकेन्द्रिय जीव के विषय में तृतीय अवान्तरशतक है। [2] काउलेस्सेहि वि सयं एवं चेव / [2] कापोतलेश्यो एकेन्द्रिय के लिए भी इसी प्रकार चतुर्थ शतक है। [3] भवसिद्धियएगिदियेहि सयं / चोत्तीसइमे सए : तइयाइ-पंचमपज्जता सया समत्ता // 34 / 3-5 / / [3] तथा भवसिद्धिक-एकेन्द्रियविषयक पंचम शतक भी समझना चाहिए। // तृतीय से पंचम शतक तक : प्रत्येक के ग्यारह उद्देशक समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org