________________ चउत्थे एगिदियसए : पढमाइ-एक्कारस-पज्जंता उद्देसगा चतुर्थ एकेन्द्रियशतक : पहले से ग्यारहवें पर्यन्त उद्देशक द्वितीय एकेन्द्रियशतकानुसार कापोतलेश्यो एकेन्द्रिय-वक्तव्यता-निर्देश 1. एवं काउलेस्से हि वि सयं भाणितन्वं, नवरं 'काउलेस्स' त्ति अभिलावो। // चउत्थे एगिदियसए : पढमाइ-एक्कारस-पज्जंता उद्देसगा समत्ता // 4-1-11 / / ॥तेत्तीसइमे सए : चउत्थं एगिदियसयं समत्तं // 33-4 / / कापोतलेश्यी एकेन्द्रिय के विषय में भी इसी प्रकार (पूर्ववत्) शतक कहना चाहिए, किन्तु 'कापोतलेश्या', ऐसा पाठ कहना चाहिए / / तेतीसवां शतक : चतुर्थ एकेन्द्रिय शतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त सम्पूर्ण // // तेतीसवां शतक : चतुर्थ एकेन्द्रियशलक समाप्त // 33 // 4 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org