________________ तेत्तीसइमं सयं : बारस एगिदियसयाणि तेतीसवाँ शतक : बारह एकेन्द्रियशतक पढमे एगिदियसए : पढमो उद्देसओ प्रथम एकेन्द्रियशतक : प्रथम उद्देशक एकेन्द्रिय जीवों के भेद-प्रभेदों का निरूपण 1. कतिविधा णं भंते ! एगिदिया पन्नत्ता? गोयमा ! पंचविहा एगिदिया पन्नत्ता, तंजहा-पुढविकाइया जाव वणस्सतिकाइया। [1 प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? [1 उ.] गौतम ! एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के कहे हैं। यथा-पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक / 2. पुढविकाइया णं भंते ! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता तं जहा-सुहमपुढविकायिया य, बायरपुढ विकाइया य / [2 प्र.] भगवन् ! पृथ्वोकाधिक जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? [2 उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के कहे हैं, यथा--सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और बादरपृथ्वीकायिक / 3. सुहमपुढविकाइया णं भंते ! कतिविहा पन्नत्ता ? गोयमा ! दुविहा पन्नता, तं जहा–पज्जत्ता सुहमयुद्धविकाइया य, अपज्जत्ता सुहमपुढविकाइया य। [3 प्र.] भगवन् ! सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? [3 उ.] गौतम ! के दो प्रकार के कहे हैं। यथा-पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक। 4. बायरपुढविकाइया गं भंते ! कति विहा पन्नत्ता ? एवं चेव / [4 प्र.] भगवन् ! बादरपथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? [4 उ.] गौतम ! वे भी पूर्ववत् दो प्रकार के हैं / 5. एवं प्राउकाइया वि चउपकरणं भेएणं तम्या / [5] इसी प्रकार प्रकायिक जीवों के चार भेद जानने चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org