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________________ इकत्तीसवां शतक : उद्देशक 2] [611 6. कण्हलेस्सखुड्डागदावरजुम्मनेरइया णं भंते ! को उववज्जति ?. एवं चेव, नवरं दो वा, छ वा, दस वा, चोद्दस वा / सेसं तं चेव / [6 प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी क्षुद्रद्वापरयुग्मराशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [6 उ.] गौतम ! इसी प्रकार (पूर्ववत्) समझना। किन्तु दो, छह, दस या चोदह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं / शेष पूर्ववत् / 7. एवं धूमध्यभाए वि जाव अहेसत्तमाए। [7] इसी प्रकार धूमप्रभा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए। 8. कण्हलेस्सखुड्डागकलियोगनेरइया णं भंते ! कओ उववज्जंति ?0 एवं चेव, नवरं एकको वा, पंच वा, नव वा, तेरस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा। सेसं तं चेव / [प्र.] भगवन् ! क्षुद्रकल्योजराशिपरिमाण कृष्णलेश्या वाले नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [8 उ.] गौतम ! पूर्ववत् जानना। किन्तु परिमाण में वे एक, पांच, नौ, तेरह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं / शेष पूर्ववत् / / 6. एवं धूमप्पभाए वि, तमाए वि, अहेसत्तमाए वि। सेवं भंते ! सेवं भंते ! तिः / ॥इक्कतीसइमे सए : बितिम्रो उद्देसनो समतो // 31.2 // [6] इसी प्रकार धूमप्रभा, तम:प्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त समझना / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-कृष्णलेश्यो नरयिकों के विषय में प्रस्तुत प्रकरण में कृष्णलेश्या वाले नयिकों के सम्बन्ध में विविध पहलुनों से उत्पत्ति का कथन किया है। यह लेश्या पांचवीं, छठी और सातवीं नरकपृथ्वी के नैरयिकों में होती है। यहाँ सामान्यदण्डक नया नरकत्रय-सम्बन्धी तीन दण्डक, यों कुल चार दण्डक होते हैं। इनका उपपात (उत्पाद) प्रज्ञापनासूत्र के छठे व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार है। इनमें असंज्ञी, सरीसृप, पक्षी और सिंह (आदि सभी चतुष्पदों) को छोड़ कर अन्य तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय और गर्भज उत्पन्न होते हैं।' // इक्कतीसवां शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त / 1. (क) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 7, पृ. 3642 (ख) भगवती. प्र. वृत्ति, पत्र 150 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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