________________ तीसवां शतक : उद्देशक 2] [6.1 5 प्र.) भगवन् ! क्रियावादी अनन्तरोपपन्नक नै रयिक, नैरयिक का आयुष्य बांधते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [5 उ.] गौतम ! वे नारक,तिर्यञ्च, मनुष्य और देव का आयुष्य नहीं बांधते / 6. एवं प्रकिरियावाई वि, अन्नाणियवाई वि, वेणइयवाई वि। [6] इसी प्रकार प्रक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी अनन्तरोपपन्नक नैरयिक के विषय में समझना चाहिए / 7. सलेस्सा णं भंते ! किरियावाई अणंतरोववनगा नेरइया कि नेरइयाउयं० पुच्छा। गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति, जाव नो देवाउयं पकरेंति / [7 प्र.] भगवन् ! सलेश्यी क्रियावादी अनन्त रोपपन्नक नैरयिक नारकायुष्य बांधते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / 17 उ. | गौतम ! वे नैरयिकायुष्य यावत् देवायुष्य नहीं बांधते / 8. एवं जाव वेमाणिया। | 8 | इसी प्रकार (असुरकुमारादि से लेकर) यावत् वैमानिक पर्यन्त जानना चाहिए / 6. एवं सब्वट्ठाणेसु वि अणंतरोववन्नगा नेरइया न किंचि वि पाउयं पकरेंति जाव अणागारोवउत्त ति। [9] इसी प्रकार सभी स्थानों में अनन्त रोपपन्नक नै रयिक यावत् अनाकारोपयुक्त जीवों तक किसी भी प्रकार का प्रायुष्यबन्ध नहीं करते / 10. एवं जाव वेमाणिया, नवरं जं जस्स अस्थि तं तस्स भाणियव्यं / 10] इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त समझना चाहिए; किन्तु जिसमें जो बोल सम्भव हो, वह उसमें कहना चाहिए / विवेचन-अनन्तरोपपन्नक नैरयिकादि चौवीस दण्डकों का प्रायष्यबन्ध----प्रस्तुत प्रकरण आयुष्यबन्ध का है / अनन्त रोपपन्नक किसी भी विशेषण से युक्त हो, उसमें किसी भी प्रकार का आयुष्य नहीं बंधता / क्रियावादी आदि चारों में अनन्तरोपपन्न चौवीस दण्डकों की ग्यारह स्थानों द्वारा भव्याभव्यत्व-प्ररूपणा 11. किरियावाई णं भंते / अणंतरोववनगा नेरइया कि भवसिद्धीया प्रभवसिद्धीया ? गोयमा ! भवसिद्धीया, नो प्रभवसिद्धीया। [11 प्र. भगवन् ! क्रियावादी अनन्तरोपपन्नक नरयिक भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक ? [11 उ.] गौतम ! वे भवसिद्धिक हैं, अभवसिद्धिक नहीं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org