________________ तीसवां शतक : उद्देशक 1] [593 अजानवादी, इन दो समवसरणों में इसी प्रकार (पूर्वकथनानुसार) मनुष्य और तिर्यञ्च, दो प्रकार का आयुष्य बांधते हैं। किन्तु तेजोलेश्या में तो किसी भी प्रकार का आयुष्यबन्ध नहीं होता। 73. [1] एवं प्राउक्काइयाण वि, वणस्सतिकाइयाण वि। [73-1 | इसी प्रकार अप्कायिक और बनस्पतिकायिक जीवों के आयुष्य-बन्ध के विषय में जानना चाहिए। [2] तेउकाइया०, वाउकाइया०, सब्वट्ठाणेसु मज्झिमेसु दोसु समोसरणेसु नो नेरइयाउयं पक०, तिरिक्खजोणिधाउयं पकरेति, नो मणुयाउयं पकरेंति, नो देवाज्यं पकरेंति / [73-2] तेजस्कायिक और वायुकायिक जोत्र, सभी स्थानों में अक्रियावादी और अज्ञानवादो, इन दो मध्यम समवसरणों में, नैरयिक, मनुष्य और देव का आयुष्य नहीं बांधते / एकमात्र निर्यञ्च का अायुष्य बांधते हैं। 74. बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदियाणं जहा पुढविकाइयाणं, नवरं सम्मत्तनाणेसु न एक्कं पि पाउयं पकरति / 74 | द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों का प्रायुष्यबन्ध पृथ्वीकायिक जीवों के तुल्य है। परन्तु सम्यक्त्व और ज्ञान में वे किसी भी आयुष्य का बन्ध नहीं करते। 75. किरियावाई णं भंते ! पंचेंदियतिरिक्खजोणिया कि नेरइयाउयं पकरेंति० पुच्छा। गोयमा ! जहा मणपज्जवनाणी। [75 प्र.] भगवन् ! क्रियावादी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च नैरयिक का आयुष्य बांधते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् पृच्छा / / 75 उ.] गौतम ! इनका आयुष्यबन्ध मनःपर्यवज्ञानी के समान है। 76. अकिरियाबादी अन्नाणियवादी वेणइयवादी य चउठिवह पि पफरेंति / [76 प्रक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी (तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय जीव) चारों प्रकार का प्रायुष्य बांधते हैं / 77. जहा प्रोहिया तहा सलेस्सा वि। [77| सलेश्यो (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च) जोवों का निरूपण औधिक जीव के सदृश है / 78. कण्हलेस्सा ण भंते ! किरियावादी पंचिदियतिरिक्खजोणिया कि नेरइयाउयं० पुच्छा। गोयमा ! नो नेरतियाउयं पकरेंति, नो तिरिक्खजोणियाउयं०. नो मणुस्साउयं०, नो देवाउयं पकरेंति। [78 प्र.] भगवन ! कृष्णलेश्यी क्रियावादी पंचेन्द्रियतिर्यञ्च नैरपिक का प्रायव्य बांधते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [78 उ.] गौतम ! वे नै रयिक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव किसी का भी आयुष्य नहीं बांधते / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org