________________ 590] [व्याख्याप्राप्तिसूत्र 55. अन्नाणी जाव विभंगनाणी जहा कण्हपक्खिया। [55/ अज्ञानी (से लेकर) यावत् विभंगज्ञानी तक का आयुष्यबन्ध कृष्णपाक्षिक के समान समझना चाहिए। 56. सन्नासु च उसु वि जहा सलेस्सा। [56] अाहारादि चारों संज्ञाओं वाले जीवों का आयुष्यबन्ध सलेश्यो जोवों के समान है। 57. नोसन्नोवउत्ता जहा मणपज्जवनाणो। [57] नोसंज्ञोपयुक्त जीवों का प्रायुष्यबन्ध मनःपर्यवज्ञानी के सदृश है / 58. सवेयगा जाव नपुसगवेयगा जहा सलेस्सा। [58] सवेदी (से लेकर) यावत् नपुंसकवेदी तक (आयुष्यबन्ध) सलेश्यो जोवों के समान है। 56. अवेयगा जहा अलेस्सा। [56] अवेदो जीवों का प्रायुष्यबन्ध अलेश्यी जीवों के समान है। 60. सकसायी जाव लोभकसायी जहा सलेस्ता / [30] सकषायो (से लेकर) यावत् लोभकषायी तक का सलेश्यी जीवों के समान प्रायुष्यबन्ध जानना। 61. प्रकसायी जहा अलेस्सा। [61] अकपायी जीवों के विषय में अलेश्यी के समान जानना। 62. सजोगी जाव कायजोगी जहा सलेस्सा। [62] सयोगी (से लेकर) यावत् काययोगो तक मलेश्यी जीवों के समान प्रायुष्यबन्ध समझना चाहिए। 63. अजोगी जहा प्रलेस्सा। [63] अयोगी जोवों के विषय में अलेश्यो के समान कहना चाहिए / 64. सागारोवउत्ता य अणागारोवउत्ता य जहा सलेस्सा। [64] साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त के विषय में सलेश्यो जीवों के समान जानना चाहिए। विवेचन--क्रियावादी जोवों के प्रायुष्यबन्ध का विवरण --प्रस्तुत 33-1 सू. में जो यह कहा गया है कि प्रौधिक क्रियावादी जीव नारक और तिर्यञ्च का अायुष्य नहीं बांधते, किन्तु मनुष्य और देव का प्रायुष्य बांधते हैं; उसका आशय यह है कि जो नैरयिक और देव क्रियावादी हैं, वे मनुष्य का ग्रायुष्य बांधते हैं तथा जो मनुष्य और पंचेन्द्रियतिर्यञ्च क्रियावादी हैं, वे देव का प्रायुष्य वांधते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org