________________ दसमो उद्देसओ : 'अभविए' दसवाँ उद्देशक : प्रभव्य जीवों की उत्पत्ति चौवीस दण्डकगत प्रभव्य जीवों को उत्पत्ति का अतिदेशपूर्वक निरूपण 1. प्रभवसिद्धियनेरइया णं भंते ! कहं उववज्जंति ? गोयमा ! से जहानामए पवए पवमाणे०, अयसेसं तं चेक जाच येमाणिए। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। ॥पंचवीसइमे सते : दसमो उद्देसनो समत्तो // 25-10 // [1 प्र.] भगवन् ! प्रभवसिद्धिक (अभव्य) नैरयिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि [1 उ.] गौतम ! जैसे कोई कूदने बाला पुरुष कूदता हुआ, इत्यादि अवशिष्ट (समस्त वर्णन) पूर्ववत् यावत् वैमानिक पर्यन्त (कहना चाहिए)। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है' यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। // पच्चीसवां शतक : दसवाँ उद्देशक समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org