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________________ पच्चीसवां शतक : उह शक 7 पादपोपगमन अनशन में हाथ-पैर हिलाने का भी प्रागार नहीं है / साधक संथारा करके जिस स्थान में जिस रूप में एक बार लेट जाता है, फिर उसी स्थान में उसी स्थिति में लेटे रहना और अन्तिम समय तक निश्चल होकर मृत्यु का सद्भावना से वरण करना पादपोषगमन है। तीनों या चारों प्रकार के आहार का त्याग करके जो संथारा किया जाता है, उसे भक्तप्रत्याख्यान अनशन कहते हैं, इसे 'भक्तपरिज्ञा' भी कहते हैं। पादपोपगमन और भक्तप्रत्याख्यान के निर्झरिम और अनियरिम, ऐसे दो-दो भेद होते हैं। जिस साधक का संथारा ग्राम आदि में रहते हुए हुअा हो और उसके मृतशरीर को ग्रामादि से बाहर ले जाया जाए, उसे निर्हारिम' क ते हैं और ग्रामादि से बाहर किसी पर्वत की गुफा आदि में जो संथारा (अनशन) किया जाए, उसे 'अनिर्हारिम' कहते हैं। पादपोषगमन अप्रतिकर्म होता है, उसमें संथारे की स्थिति में किसी दूसरे प्रति से किसी प्रकार को सेवा नहीं ली जाती। भक्तप्रत्याख्यान अनशन सप्रतिकर्म होता है। इसमें दूसरे मुनियों से सेवा कराई जा सकती है / ' अवमौदर्य तप के भेद-प्रभेदों की प्ररूपणा 203. से कि तं ओमोदरिया ? ओमोदरिया दुबिहा पन्नत्ता, तं जहा–दव्योमोदरिया य भावोमोदरिया य / [203 प्र.] भगवन् ! अवमोदरिका (ऊनोदरी) तप कितने प्रकार का है ? 203 उ.] गौतम ! अवमोदरिका तप दो प्रकार का कहा गया है / यथा-द्रव्य-अवमोदरिका और भाव-अवमोदरिका / 204. से कि तं दव्वोमोदरिया ? दबोमोदरिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-उवगरणदश्वोमोदरिया य, भत्तपाणदव्वोमोयरिया य। [204 प्र.] भगवन् ! द्रव्य-अवमोदरिका कितने प्रकार का कहा है ? (204 उ.] गौतम ! द्रव्य-अवमोदरिका दो प्रकार का कहा है। यथा-उपकरणद्रव्यअवमोदरिका और भक्तपानद्रव्य-अवमोदरिका / 205. से कि तं उवगरणदव्योमोदरिया ? उवगरणदव्योमोयरिया-एगे वत्थे एगे पादे चियत्तोवगरणसातिज्जणया। से तं उक्गरणदब्योमोयरिया। 205 प्र. भगवन् ! उपकरणद्रव्य-अवमोदरिका कितने प्रकार का कहा है ? [205 उ.] गौतम ! उपकरणद्रव्य-अवमोदरिका (तीन प्रकार का है, यथा---) एक वस्त्र, एक पात्र और त्यक्तोपकरण-स्वादनता / यह हुमा उपकरणद्रव्य-प्रबमोदरिका / 1. भगवती. (हिन्दी विवेचन) भाग 7, प. 3497-3498 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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