________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 7] [47 सूक्ष्मसम्पराय के एक भव में चार अाकर्ष होते हैं और उसकी प्राप्ति तीन भव तक हो सकती है / इस दृष्टि से उसके एक भव में चार बार, दूसरे भव में चार बार और तीसरे भव में एक बार, इस प्रकार अनेक भवों में नौ पाकर्ष होते हैं / यथाख्यात संयत के एक भव में दो, दूसरे भव में दो और तीसरे भव में एक आकर्ष होने से तीन भवों में पांच पाकर्ष होते हैं / ' उनतीसवाँ काल-(स्थिति)-द्वार : एकवचन और बहुवचन से स्थिति-प्ररूपरणा 154. सामाइयसंजए णं भंते ! कालतो केवचिरं होति ? गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणएहि नहिं वासेहिं ऊणिया पुवकोडी। [154 प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत कितने काल तक रहता है ? (अर्थात् उसकी स्थिति कितनी है ?) 154 उ.] गौतम ! वह जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन नौ वर्ष कम पूर्वकोटिवर्ष पर्यन्त रहता है। 155. एवं छेदोवद्वावणिए वि। [155] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत के विषय में भी कहना चाहिए / 156. परिहारविसुद्धिए जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणएहि एक्कूणतीसाए वासेहि ऊणिया पुन्धकोडी। [156] परिहारविशुद्धिकसंयत जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन 26 वर्ष कम पूर्वकोटिवर्ष पर्यन्त रहता है। 157. सुहमसंपराए जहा नियंठे (उ० 6 सु० 200) / [157] सूक्ष्मसम्परायसंयत के विषय में (उ. 6, सु. 202 में उक्त) निर्ग्रन्थ के अनुसार कहना चाहिए। 158. अहक्खाए जहा सामाइयसंजए। [158] यथाख्यातसंयत का कथन सामायिकसंयत के समान जानना / 156. सामाइयसंजया णं भंते ! कालतो केवचिरं होंति ? गोयमा ! सव्वद्ध। [156 प्र. भगवन् ! (अनेक) सामायिकसंयत कितने काल तक रहते हैं ? [156 उ.] गौतम ! वे सर्वाद्धा (सदाकाल) रहते हैं / 160. छेदोवडावणिएस पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं अड्डाइज्जाइं वाससयाई, उक्कोसेणं पन्नासं सागरोवमकोडिसयसहस्साई। - .. - 1. (क) भयवती. अ. वृत्ति, पत्र 916 (ख) भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा. 7, पृ. 3474-3475 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org