________________ 470) [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कर्म का बन्ध नहीं करते तथा बादर कषाय का उदय न होने से मोहनीयकर्म का बन्ध भी नहीं करते / अतः इन दो के अतिरिक्त शेष छह कर्मप्रकृतियों का बन्ध होता है।' 122. सामाइयसंजए णं भंते [ कति कम्मप्पगडीयो वेदेति ? गोयमा ! नियम अट्ठ कम्मप्पगडीओ वेदेति / [122 प्र. भगवन् ! सामायिकसंयत कितनी कमप्रकृतियों का वेदन करता है ? [122 उ.] गौतम ! वह नियम से पाठ कर्मप्रकृतियों का बेदन करता है। 123. एवं जाव सुहुमसंपरागे / [123] इसी प्रकार यावत् सूक्ष्मसम्परायसंयत के विषय में जानना / बाईसवाँ वेदनद्वार : कर्मप्रकृतिवेदन की प्ररूपरणा 124. प्रहक्खाए पुच्छा। गोयमा ! सत्तविहवेदए वा, चउविहवेदए वा। सत्त वेदेमाणे मोहणिज्जवज्जानो सत्त कम्मप्पगडीनो वेदेति / चत्तारि वेदेमाणे वेदणिज्जाऽऽउय-नाम-गोयानो चत्तारि कम्मप्पगडीओ वेदेति / [दारं 22] / [124 प्र.] भगवन् ! यथाख्यातसंयत कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? [124 उ.] गौतम ! वह या तो सात कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है या फिर चार का वेदन करता है। यदि सात कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है तो मोहनीयकर्म को छोड़ कर शेष सात कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है। यदि चार का वेदन करता है तो बेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र, इन चार कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है / [बाईसवाँ द्वार] विवेचन-यथाख्यातसंयत के कर्मप्रकृतियों का वेदन--यथाख्यातसंयत के निर्ग्रन्थदशा में मोहनीयकर्म का क्षय या उपशम हो जाने से बह मोहनीय को छोड़ कर शेष सात कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है और स्नातक अवस्था में चार घाती कर्मों (ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय) का क्षय हो जाने से वह शेष चार प्रघाती कर्मों का ही बेदन करता है। तेईसवाँ कर्मोदीरणद्वार : कर्मों की उदीरणा की प्ररूपणा 125. सामाइयसंजए णं भंते ! कति कम्मपगडीओ उदीरेति ? गोयमा ! सत्तविह० जहा बउसो (उ० 6 सु० 162) / [125 प्र.] भगवन् ! सामायिकसंयत कितनी कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है ? [125 उ.] गौतम ! वह सात कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है ; इत्यादि वर्णन (उ. 6, सू. 162 में कथित) बकुश के समान जानना / 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 915 2. भगवती. म. वृत्ति, पत्र 915 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org