________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 7 ] 107. परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए (उ० 6 सु० 133) / [107] परिहारविशुद्धि कसंयत का कथन (उ. 6, सू.१३३ में उल्लिखित) पुलाक के समान 108. सुहमसंपराए जहा नियंठे (उ० 6 सु० 136) / {108] सूक्ष्म सम्परायसंयत की वक्तव्यता (उ. 6, सू. 136 में कथित) निर्ग्रन्थ के समान है / 106. अहक्खाए जहा सिणाए (उ० 6 सु० 141), नवरं जइ सलेस्से होज्जा एमाए सुक्कलेसाए होज्जा / [दारं 16] / [109] यथाख्यातसंयत का कथन (उ. 6, सू. 141 में कथित) स्नातक के समान है / किन्तु यदि वह सलेश्य होता है तो एकमात्र शुक्ललेश्यी होता है / [उन्नीसवाँ द्वार] विवेचन-निष्कर्ष सामायिक से लेकर छेदोपस्थापनीयसंयत तक सलेश्यी होते हैं। परिहारविशुद्धिक पुलाकवत् तथा सूक्ष्मसम्पराय निम्रन्थ के समान होते हैं। यथाख्यातसंयत का कथन स्नातक के समान है / वह सलेश्य भी होता है, अलेश्य भी। यदि सलेश्य होता है तो स्नातक परमशुक्ललेश्यायुक्त होता है, किन्तु यथाख्यातसंयत शुक्ललेश्या वाला ही होता है।' बीसवाँ परिणामद्वार : वर्द्धमानादि-परिणाम-प्ररूपणा 110. सामाइयसंजए णं भंते ! कि बड्डमाणपरिणामे होज्जा, हायमाणपरिणामे, अवट्टियपरिणामे ? ___ गोयमा ! वड्डमाणपरिणामे, जहा पुलाए (उ० 6 सु० 143) / [110 प्र.] भगवन् ! सामायिकसयत वर्द्धमान परिणाम वाला होता है, होयमान परिणाम वाला होता है, अथवा अवस्थित परिणाम वाला होता है ? [110 उ.] गौतम ! वह वर्द्धमान परिणाम वाला होता है; इत्यादि वर्णन (उ.६, सू. 134 में कथित) पुलाक के समान जानना / 111. एवं जहा परिहारविसुद्धिए। [111] इसी प्रकार यावत् परिहारविशुद्धिकसंयत पर्यन्त कहना / 112. सुहमसंपराय० पुच्छा। गोयमा ! वड्डमाणपरिणामे वा होज्जा, हायमाणपरिणामे वा होज्जा, नो अवट्ठियपरिणामे होज्जा। / 112 प्र.] भगवन् ! सूक्ष्मसम्परायसंयत वर्द्धमान परिणाम वाला होता है ? इत्यादि प्रश्न / [112 उ.] गौतम ! वह वर्द्धमान परिणाम वाला होता है या हीयमान परिमाण वाला होता है, किन्तु अवस्थित परिणाम वाला नहीं होता। - ---- ---- -- -- 1. वियाहपण्णत्तिसुतं भा. 2 (मू. पा. टिप्पण युक्त), पृ. 1051 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org