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________________ 46.] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 70. सेसा जहा नियंठे (उ० 6 सं०८३)। [70] शेष (सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात संयत) के विषय में निर्ग्रन्थ के समान (उ. 6, सू. 63 के अनुसार) जानना। 71. सामाइयसंजयस्स णं भंते ! देवलोगेसु उववज्जमाणस्स केवतियं कालं ठिती पन्नता? गोयमा ! जहन्नेणं दो पलियोवमाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोकमाई / [71 प्र.) भगवन् ! देवलोक में उत्पन्न होते हुए सामायिकसयत की कितने काल की स्थिति कही गई है ? [71 उ.] गौतम ! जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति कही है / 72. एवं छेदोवट्ठावणिए वि / [72] इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत की स्थिति भी समझना चाहिए / 73. परिहारविसुद्धियस्स पुच्छा / गोयमा ! जहन्नेणं दो पलिप्रोवमाइं, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाई। [73 प्र.] भगवन् ! देवलोक में उत्पन्न होते हुए परिहारविशुद्धिकसंयत की स्थिति कितने काल की होती है ? [73 उ.] गौतम ! उसकी स्थिति जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट अठारह सागरोपम की होती है। 74. सेसाणं जहा नियंठस्स (उ० 6 सु० 88) / [वारं 13] / [74] शेष दो संयतों (सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात संयत) की स्थिति (उ.६, सू. 88 में कथित) निग्रंन्थ के समान जानना चाहिए / [तेरहवाँ द्वार] विवेचन-गति, उत्पत्ति और स्थिति सामायिक और छेदोपस्थापनीय संयत देवगति में वैमानिक देवों में जघन्य सौधर्मकल्प में और उत्कृष्ट अनुत्तरविमान में उत्पन्न होते हैं तथा इन दोनों संयतों की स्थिति जघन्य दो पल्योपम और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की होती है। परिहारविशद्धिसंयत देवगति में, वैमानिक देवों में जघन्य सौधर्मकल्प में और उत्कृष्ट सहस्रार देवलोक में उत्पन्न होता है / सूक्ष्मसम्पराय देवगति में, वैमानिक देवों में अजघन्यानुत्कृष्ट अनुत्तरमविमान में उत्पन्न होते हैं, जिनकी स्थिति अजघन्यानुत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की होती है। यथाख्यातसंयत देवगति में वैमानिक देवों में अजघन्यानुष्कृष्ट अनुत्तरविमानों में उत्पन्न होते हैं, कोई-कोई सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होते हैं।' चौदहवाँ संयमद्वार : पंचविध संयतों में अल्पबहुत्वसहित संयमस्थानप्ररूपण 75, सामाइयसंजयस्स णं भंते ! केवतिया संजमठाणा पन्नत्ता? गोयमा! असंखेज्जा संजमठाणा पन्नत्ता। 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मू. पा. टि.) भा. 2, पृ. 1047-1048 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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