________________ 444) व्यायाप्रज्ञप्तिसूब 231. एवं पडिसेवणाकुसीला वि। [231] इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील के विषय में भी जानना चाहिए। 232. कसायकुसीला णं पुच्छा। गोयमा ! पडिवज्जमाणए पडुच्च सिय अस्थि, सिथ नस्थि / जदि अस्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेगं सहस्सपुहत्तं / पुवपडिवन्नए पडुच्च जहन्नेणं कोडिसहस्सपुहनं, उपकोसेण वि कोडिसहस्सपुहत्तं। [232 प्र.] भगवन् ! कषायकुशील एक समय में कितने होते हैं ? [232 उ.] गौतम ! प्रतिपद्यमान की अपेक्षा कषायकुशील कदाचित् होते हैं, कदाचित् नहीं भी होते / यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट सहस्रपृथक्त्व होते हैं। पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा कषायकुशील जघन्य और उत्कृष्ट कोटिसहस्रपथक्त्व (दो हजार करोड़ से नौहजार करोड़ तक) होते हैं। 233. नियंठा गं० पुच्छा। गोयमा ! पडिबज्जमाणए पडच्च सिय अस्थि, सिय नस्थि / जदि प्रत्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं बावट्ठ सयं-अटुसतं खवगाणं, चउप्पण्णं उवसामगाणं / पुस्वपडिवानए पडुच्च सिय अस्थि, सिय नस्थि / जति अस्थि जहन्नेणं एक्को वा वो वा तिन्नि था, उक्कोसेणं सयपहत्तं। [233 अ.] भगवन् ! निम्रन्थ एक समय में कितने होते हैं ? [233 उ.] गौतम प्रतिपद्यमान की अपेक्षा कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं भी होते / यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट एक सौ बासठ होते हैं / उनमें से क्षपकश्रेणी वाले 108 और उपशमश्रेणी बाले 54, यों दोनों मिलाकर 162 होते हैं / पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा निर्ग्रन्थ कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते। यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व होते हैं / 234. सिणाया पं० पुच्छा। गोयमा ! पडिवज्जमाणए पडुच्च सिय अस्थि, सिय नस्थि / जदि अस्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि बा, उक्कोसेणं अट्ठसयं / युवडिवन्नए पडुच्च जहन्नेणं कोडिपुहत्तं, उक्कोसेण वि कोडिपहत्तं / [दारं 35] / [234 प्र.] भगवन् ! स्नातक एक समय में कितने होते है ? [234 उ.] गौतम ! प्रतिपद्यमान की अपेक्षा वे कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते। यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट एक सौ पाठ होते हैं। पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा स्नातक जघन्य और उत्कृष्ट कोटिपृथक्त्व होते हैं। पैतीसवाँ द्वार] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org