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________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 6 ] पूर्वकोटिवष-पर्यन्त अवस्थितपरिणाम वाला होकर शैलेशो-अवस्था की प्राप्ति-पर्यन्त विचरण करता है और शैलेशी अवस्था में वह वर्द्ध मानपरिणामी हो जाता है।' इक्कीसवाँ द्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों में कर्मप्रकृति-बंध-प्ररूपणा 151. पुलाए णं भंते ! कति कम्मप्पगडीमो बंधति ? गोयमा ! पाउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीयो बंधति / [151 प्र.| भगवन् ! पुलाक कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधता है |151 उ. गौतम ! वह आयुष्यकर्म को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियाँ बांधता है। 152. ब उसे० पुच्छा। गोयमा ! सत्तविहबंधए वा, प्रविहबंधए वा। सत्त बंधमाणे माउयवज्जाबो सत्त कम्मम्पगडीअो बंधति, अट्ठ बंधमाणे पडिपुण्णाओ अट्ठ कम्मप्पगडोमो बंधति / 152 प्र. भगवन् ! बकुश कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधता है ? 6152 उ. गौतम ! वह सात अथवा आठ कर्मप्रकृतियाँ बांधता है / यदि सात कर्मप्रकृतियाँ बांधता है, तो अायुष्य को छोड़कर शेष सात कर्मप्रकृतियां बांधता है और यदि ग्रायुष्यकर्म बांधता है तो सम्पूर्ण आठ कर्मप्रकृतियों को बांधता है / 153. एवं पडिसेवणाकुसीले वि / [153] इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील के विषय में भी समझना चाहिए / 154. कसायकुसोले० पुच्छा / गोयमा ! सत्तविहबंधए वा, अटविहबंधए वा, छरिवहबंधए था / सत्त बंधमाणे आउयधज्जाम्रो सत्त कम्मध्पगडीओ बंधति, अट्ठ बंधमाणे पडिपुण्णाओ अट्ट कम्मप्पगडीओ बंधति, छबंधमाणे पाउपमोहणिज्जवज्जाप्रो छ कम्मप्पगडोश्रो बंधति / 1154 प्र.] भगवन् ! कषायकुशील कितनी कर्मप्रकृतियां बांधता है ? [154 उ.] गौतम ! वह सात, आठ या छह कर्मप्रकृतियां बांधता है / सात बांधता हुआ आयुष्य के अतिरिक्त शेष सात कर्मप्रकृतियाँ बांधता है। पाठ बांधता हुआ (आयूष्यकर्मसहित) परिपूर्ण पाठ कर्मप्रकृतियाँ बांधता है और छह बांधता हुअा अायुष्य और मोहनीय कर्म को छोड़कर शेष छह कर्मप्रकृतियाँ बांधता हैं / 155. नियंठे० पुज्छा। गोयमा ! एगं वेदणिज्ज कम्मं बंधति / [155 प्र.] भगवन् ! निम्रन्थ कितनी कर्मप्रकृतियां बांधता है। [155 उ.] गौतम ! वह एकमात्र वेदनीयकर्म बांधता है। 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 902-903 . (ब) श्रीमद्भगवतीसूत्रम् चतुर्थखण्ड (गुजराती अनुवाद), पृ. 253-54 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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