SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2609
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 6] [411 विवेचन-पंचविध निर्ग्रन्थों में पुलाकादि चार प्रकार के निग्रन्थ वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं / उक्त चारों जघन्यत: सौधर्मदेवलोक में, उत्कृष्टतः क्रमशः सहस्रार, अच्युत, अच्युत, अनुत्तरविमान एवं अजघन्यानुत्कृष्ट अनुत्तर विमान में उत्पन्न होते हैं। स्नातक सीधे सिद्धगति में जाते हैं।' पदों का प्रश्न - इन्द्र, सामानिक, त्रास्त्रिश, लोकपाल और अहमिन्द्र, इन पांच पदों में से पुलाक, बकुश और प्रतिसेवनाकशील अविराधना की अपेक्षा अहमिन्द्र को छोड़कर इन्द्रादि शेष चार पदों में उत्पन्न होता है / कबायकु शोल एकमात्र अहमिन्द्र के रूप में उत्पन्न होता है / स्नातक को तो केवल सिद्धति है, अतः वहाँ इन्द्रादि पदों का प्रश्न ही नहीं है / पुलाक आदि के विषयों में इन्द्रादि देवपदवी का जो प्रतिपादन किया है वह ज्ञानादि की विराधना और लब्धि का प्रयोग न करने वाले पुलाकादि की ग्रोक्षा समझना चाहिये / अविराधक ही इन्द्रादि के रूप में उत्पन्न होता है। विराधना करके तो पुलाक यादि भवनपति आदि देवों में भी उत्पन्न होते हैं। पहले पुलाकादि की देवोत्पत्ति के विषय में किये गए प्रश्न के उत्तर में जो एकमात्र वैमानिकों में उत्पाद कहा है, वह संयम की अविराधना की अपेक्षा से जानना चाहिए, क्योंकि संयमादि की विराधना करने वालों का उत्पाद तो भवनपति आदि में ही होता है, वैमानिकों में नहीं। यह भी ध्यान रहे कि यहाँ पुलाकादि पांच का जो देवों में उत्पाद बताया है, वह देवलोक-विषयक प्रश्न होने से देवों में उत्पन्न होने का बताया है, अन्यथा विराधक पुलाक आदि तो चारों ही गतियों में उत्पन्न हो सकते हैं। स्नातक के विषय में गति, पदवी एवं स्थिति का प्रश्न नहीं किया गया है, क्योंकि उसकी एकमात्र मोक्षगति है। जहाँ प्रत्येक मुक्तजीव की स्थिति ‘सादि-अनन्त' होती है / ' चौदहवाँ संयमद्वार : पंचविध निर्ग्रन्थों के संयमस्थान और उनका अल्पबहुत्व 86. पुलागस्स णं भंते ! केवतिया संजमठाणा पन्नत्ता ? गोयमा ! असंखेज्जा संजमठाणा पन्नत्ता। [86 प्र.] भगवन् ! पुलाक के संयमस्थान कितने कहे हैं ? [86 उ.] गौतम ! उसके संयमस्थान असंख्यात कहे हैं / 60. एवं जाव कसायकुसीलस्स। [60] इसी प्रकार यावत् कषाय कुशील तक कहना चाहिए / 61. नियंठस्स णं भंते ! केवतिया संजमठाणा पन्नत्ता ? गोयमा ! एगे अजहन्नमणुक्कोसए संजमठाणे पन्नते। [61 प्र. भगवन् ! निर्गन्थ के संयमस्थान कितने कहे हैं ? [91 उ.] गौतम ! उसके एक ही अजधन्य-अनुत्कृष्ट संयमस्थान कहा है। 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. 2 (म. पा. टि.), पृ. 1926-27 2. (क) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 7, प. 3380 (ख) विशेष स्पष्टीकरण के लिए देखिये-भगवती उपक्रम, परिशिष्ट नं. 3, पृ. 622 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy