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________________ 394] [ध्यात्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन- - पंचविध निग्रन्थों में तीन सराग, दो वीतराग-सराग का अर्थ है---सकषाय / कषाय दसवें गुणस्थान तक रहता है। इसलिए आदि के पुलाक, बकुश और कुशील (प्रतिसेवनाकुशील तथा कषायकुशील), ये तीन प्रकार के निर्गन्थ सराग होते हैं, बीतराग नहीं / शेष निर्ग्रन्थ और स्नातक, ये दोनों प्रकार के निर्ग्रन्थ वीतराग होते हैं। निर्गन्थ में उपशान्तकषायवीतरागता एवं क्षीणकषायवीतरागता दोनों होती है, जबकि स्नातक में एकमात्र क्षीणकषाय वीतरागता होती है।' पंचविध निर्ग्रन्थों में स्थितकल्पादि-जिनकल्पादि-प्ररूपणा : चतुर्थ कल्पद्वार 21. पुलाए णं भंते ! कि ठियकप्पे होज्जा, अठियकप्पे होज्जा ? गोयमा ! ठियकप्पे वा होज्जा, अठियकप्पे वा होज्जा। [21 प्र.] भगवन् ! पुलाक स्थितकल्प में होता है, अथवा अस्थितकल्प में ? [21 उ.] गौतम ! वह स्थितकल्प में भी होता है और अस्थितकल्प में भी। 22. एवं जाब सिणाए। [22] इसी प्रकार (बकुश से लेकर) यावत् स्नातक तक जानना / 23. पुलाए णं भंते ! कि जिणकप्पे होज्जा, थेरकप्पे होज्जा, कप्पातोते होज्जा? गोयमा ! नो जिणकप्पे होज्जा, थेरकप्पे होज्जा, नो कम्पातीते होज्जा। [23 प्र.! भगवन् ! पुलाक जिनकल्प में होता है, स्थविरकल्प में होता है अथवा कल्पातीत में होता है ? [23 उ.] गौतम ! वह न तो जिनकल्प में होता है और न कल्पातीत होता है, किन्तु स्थविरकल्प में होता है। 24. बउसे णं० पुच्छा। गोयमा ! जिणकप्पे वा होज्जा, थेरकप्पे वा होज्जा, नो कपातीते होज्जा। [24 प्र.] भगवन् ! बकुश जिनकल्प में होता है ? इत्यादि पृच्छ। / [24 उ. ] गौतम ! वह जिनकल्प में भी होता है, स्थविरकल्प में भी होता है, किन्तु कल्पातीत में नहीं होता। 25. एवं पडिसेवणाकुसोले वि / [25] इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील के विषय में समझना चाहिए। 26. कसायकुसीले गं० पुच्छा। गोयमा ! जिणकप्पे वा होज्जा, थेरकप्पे वा होज्जा, कप्पातीते वा होज्जा। [26 प्र. भगवन् ! कषायकुशील जिनकल्प में होता है ? इत्यादि प्रश्न ! 1. (क) भरवती. अ. वृति, पत्र 894 (ख) वियाहपण्णत्तिसुत्तं भाग 2 (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त), पृ. 1020 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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