________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 4] 1214 प्र. भगवन् ! (बहुत) परमाणु-पुद्गल देशकम्पक है, सर्वकम्पक हैं या निष्कम्पक हैं ? |214 उ. गौतम ! वे देशकम्पक नहीं हैं, किन्तु सर्वकम्पक हैं और निष्कम्पक भी हैं। 215. दुपदेसिया णं भंते ! खंधा० पुच्छा। गोयमा ! देसेया वि, सम्वेया वि, निरेया वि। [215 प्र. भगवन् ! (बहुत) द्विप्रदेशी-स्कन्ध देशकम्पक हैं, सर्वकम्पक हैं या निष्कम्पक [215 उ.) गौतम ! वे देशकम्पक भी हैं, सर्वकम्पक भी है और निष्कम्पक भी हैं। 216. एवं जाव अणंतपएसिया। [216] इसी प्रकार यावत् (बहुत ) अनन्त-प्रदेशी स्कन्धों (की देशकम्पकता आदि) के विषय में जानना चाहिए। विवेचन-परमाणु-पुद्गल (एक हो या बहुत) देशकम्पक नहीं होते, परन्तु द्विप्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्त-प्रदेशी स्कन्ध कदाचित देशकम्पक, कदाचित सर्वकम्पक और कदाचित निष्कम्पक भी होते हैं। परमाणु से अनन्त-प्रदेशो देशकम्प-सर्वकम्प-निष्कम्प स्कन्धों को स्थिति एवं कालान्तर की प्ररूपणा 217. परमाणुपोग्गले गं भंते ! सव्वेए कालतो केवचिरं होति ? गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जतिभागं / [217 प्र.] भगवन् ! (एक) परमाणु पुद्गल सर्वकम्पक कितने काल तक रहता है ? [217 उ.] गौतम ! वह जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट प्रावलिका के असंख्यातवें भाग तक (सर्वकम्पक रहता है।) 218. निरये कालतो केचिरं होति ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं। [218 प्र. भगवन् ! (एक) परमाणु-पुद्गल निष्कम्पक कितने काल तक रहता है / [218 उ.] गौतम ! वह जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यात काल निष्कम्प तक रहता है। 216. दुपएसिए णं भंते ! खंधे सेए कालतो केवचिरं होति ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं प्रावलियाए असंखेज्जतिभागं / {219 प्र. भगवन् ! द्विप्रदेशी-स्कन्ध देशकम्पक कितने काल तक रहता है ? [216 उ.] गौतम ! जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवें भाग तक देशकम्पक रहता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org