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________________ (व्याख्याप्रज्ञप्तिमा 147. छप्पएसिया जहा दुपएसिया। [147] षट्प्रदेशी स्कन्धों का कथन द्विप्रदेशी स्कन्धों के समान है / 148. सत्तपएसिया जहा तिपएसिया। {148] सप्तप्रदेशी स्कन्ध बिप्रदेशी स्कन्धवत् जानना चाहिए / 146. अट्ठपएसिया जहा चउपएसिया। [146] अष्टप्रदेशी स्कन्ध की वक्तव्यता चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के समान है। 150. नवपएसिया जहा परमाणुपोग्गला / [150] नवप्रदेशी स्कन्ध का कथन परमाणु-पुद्गलों के समान है। 151. दसपएसिया जहा दुपएसिया। 6151] दशप्रदेशी स्कन्ध की वक्तव्यता द्विप्रदेशी स्कन्ध के समान जानना / 152. संखेज्जपएसिया पं० पुच्छा। गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मर जाव सिय कलियोगा; विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि जाव कलियोगादि। [152 प्र.] भगवन् (अनेक) संख्यातप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थरूप से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न / 152 उ.] गौतम ! ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म हैं, यावत् कदाचित् कल्योज हैं। विधानादेश से कृतयुग्म भी हैं यावत् कल्योज भी हैं। 153. एवं असंखेज्जपएसिया वि, अणंतपएसिया वि। [153] इसी प्रकार (अनेक) असंख्यातप्रदेशी और अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की वक्तव्यता जानना / विवेचन--परमाण-पुद्गलों में कृतयुग्मादि-परमाणु-पुद्गल अनन्त होने पर भी उनमें संघात और भेद के कारण अनवस्थित-स्वरूप होने से वे अोघादेश से कृतयुग्मादि होते हैं। विधानादेश से अर्थात् प्रत्येक की अपेक्षा तो वे कल्योज ही होते हैं। इसी प्रकार आगे के सूत्रों में कृतयुग्मादि संख्या को स्वयमेव घटित कर लेना चाहिए।' अवगाहना, स्थिति, वर्णगन्धादि पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्मादि प्ररूपणा 154. परमाणुपोग्गले णं भंते ! कि कङजुम्मपएसोगाढे० पुच्छा। गोयमा ! नो कडजुम्मपएसोगाढे, नो तेयोय०, नो दावरजुम्म०, कलियोगपएसोगाढे / [154 प्र.! भगवन् ! (एक) परमाणु-पुद्गल कृतयुग्मप्रदेशावगाढ है ? इत्यादि पृच्छा / 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 882 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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