________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 4] [351 पुद्गल द्रव्यार्थ से संख्यातगुण हैं। उनसे संख्यातगुण कर्कश पुद्गल प्रदेशार्थ से संख्यातगुण हैं। उनसे असंख्यातगुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से असंख्यातगुण हैं / उनसे असंख्यातगुण कर्कश पुद्गल प्रदेशार्थ से असंख्यातगुण हैं। उनसे अनन्तगुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से अनन्तगुण हैं। इसी प्रकार उनसे अनन्तगुण कर्कश पुद्गल प्रदेशार्थ से अनन्तगुण हैं। 124. एवं मध्य-गरुय-लहुयाण वि अप्पाबहुयं / [124) इसी प्रकार मृदु, गुरु और लघु स्पर्श के अल्पवहुत्व के विषय में कहना चाहिए / 125. सोय-उसिण-निद्ध-लुक्खाणं जहा वण्णाणं तहेव / [125] शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्शी-सम्बन्धी अल्पबहुत्व वर्षों के अल्पबहुत्व के समान है। विवेचन-वर्णादि चारों का द्रव्यार्थ, प्रदेशार्थ और द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ से अल्पबहुत्व-एक-गुण काले आदि वर्षों से लेकर रूक्षस्पर्श वाले पुद्गलों तक का द्रव्यार्थ, प्रदेशार्थ एवं द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ रूप से अल्पबहुत्व का यथोचित तथा क्रमश: कथन किया गया है।' 126. परमाणुपोग्गले णं भंते ! दव्य?ताए कि कउजुम्मे, तेयोए, वावर०, कलियोगे ? गोयमा ! नो कडजुम्मे, नो तेयोए, नो दावर०, कलियोए। [126 प्र.] भगवन् ! एक परमाणु पुद्गल द्रव्यार्थ रूप से कृतयुग्म है, योज द्वापरयुग्म है या कल्योज है ? [126 उ.] गौतम ! वह न तो कृतयुग्म है, न व्योज है और न द्वापरयुग्म है, किन्तु कल्योज है / 127. एवं जाव अणंतपएसिए खंधे / [127] इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक जानना चाहिए। 128, परमाणुपोग्गला णं भंते ! दन्वट्ठयाए कि कउजुम्मा० पुच्छा। गोयमा ! प्रोपादेसेणं सिय कउजुम्मा जाय सिय कलियोगा। विहाणावेसेणं नो कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावर०, कलियोगा। [128 प्र.] भगवन् ! (बहुत) परमाणुपुद्गल द्रव्यार्थ से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न / [128 उ.] गौतम ! प्रोधादेश से कदाचित् कृतयुग्म, यावत् कल्योज है; किन्तु विधानादेश से कृतयुग्म, योज या द्वापरयुग्म नहीं हैं, कल्योज हैं। 129 एवं जाव अणंतपएसिया खंधा। [126] इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्धों पर्यन्त जानना चाहिये / 130. परमाणुपोग्गले णं भंते ! पदेसट्टयाए कि कउजुम्मे पुच्छा। गोयमा ! नो कडजुम्मे, नो तेयोगे, नो दावर०, कलियोए। 1. वियाहपतिसुत्त भा. 2, पृ. 1000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org