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________________ पच्चीसवां शतक : उ शक) [131 27. एवं जाव ईसिपब्भारा पुढयो / |27] इसी प्रकार [ईशान देवलोक से लेकर] यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक के विषय में समझना चाहिए। विवेचन धर्मास्तिकाय आदि की कृतयुग्मता-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आदि सभी आस्तिकाय लोकप्रमाण होने से वे लोकाकाश के असंख्यात-प्रदेशों में प्रवगाढ हैं / लोक असंख्यातप्रदेशों में अवस्थित हैं, इसलिए इन सबमें कृतयग्मता ही घटित होती है। इसी प्रकार दूसरे सभी अस्तिकाय भी लोकप्रमाण होने से उनमें भी कृतयुग्मता है, किन्तु आकाशास्तिकाय के अवस्थित अनन्तप्रदेश होने से तथा प्रात्मावगाही होने से कृतयुग्म-प्रदेशावगाढता है तथा अद्धासमय अवस्थित असंख्येय-प्रदेशात्मक मनुष्यक्षेत्रावगाही होने से कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ है / ' जीव एवं चौवीस दण्डकों में एकत्व-बहुत्व की अपेक्षा द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थरूप युग्मभेदनिरूपण 28. जीवे गं भंते ! दवट्ठयाए कि कडजुम्मे पुच्छा। गोयमा ! नो कडजम्मे, नो तेयोए, नो दावरजुम्मे, कलियोए। [28 प्र. भगवन् ! (एक) जीव द्रव्यार्थरूप से कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न / {28 उ.] गौतम ! वह कृतयुग्म, व्योज या द्वापरयुग्म नहीं, किन्तु कल्योजरूप है। 26. एवं नेरइए वि। [26] इसी प्रकार (एक) नै रयिक के विषय में जानना चाहिए / 30. एवं जाव सिद्ध। [30] इसी प्रकार यावत् सिद्ध-पर्यन्त जानना / 31. जीवा गं भंते ! दवट्टयाए कि कडजुम्मा० पुच्छा। गोयमा ! ओघादेसेणं कडजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावर०, नो कलियोगा; विहाणावेसेणं नो कङजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, कलियोगा। | 31 प्र.] भगवन् ! (अनेक) जीव द्रव्यार्थरूप से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न / [31 उ, गौतम ! वे अोधादेश से (सामान्यतः) कृतयुग्म हैं, किन्तु योज, द्वापरयुग्म या कल्योजरूप नहीं हैं / विधानादेश (प्रत्येक की अपेक्षा) से वे कृतयुग्म, योज तथा द्वापरयुग्म नहीं हैं, किन्तु कल्योजरूप हैं। 32. नेरइया णं भंते ! दवद्वताए० पुच्छा। गोयमा ! श्रोधावेसेणं सिय कडजुम्मा, जाव सिय कलियोगा; विहाणावेसेणं नो कउजुम्मा, नो तेयोगा, नो दावरजुम्मा, कलियोगा। [32 प्र. भगवन् ! (अनेक) नरयिक द्रव्यार्थरूप से कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न / 1. भगवती प्र. कृत्ति, पत्र 874 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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