________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 4] [2-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि नैरयिकों में चार युग्म होते हैं, यथा--कृतयुग्म इत्यादि / [2-2 उ.] वही पूर्वोक्त कारण यहां कहना चाहिए / 3. एवं जाव वाउकाइयाणं / [3] इसी प्रकार यावत् वायुकायिक पर्यन्त जानना / 4. [1] वणस्सतिकाहयाणं भंते ! * पुच्छा। गोयमा ! वणस्सतिकाइया सिय कडजुम्मा, सिय तेयोया, सिय दावरजुम्मा, सिय कलियोया ? [4-1 प्र.] भगवन् ! वनस्पतिकायिकों में कितने युग्म कहे हैं ? [4-1 उ.] गौतम ! वनस्पतिकायिक कदाचित् कृतयुग्म होते हैं, कदाचित् त्र्योज होते हैं, कदाचित् द्वापरयुग्म और कदाचित् कल्योज होते हैं ? [2] से केणद्वेणं भंते ! एवं बुच्चइ-वणस्सइकाइया जाव कलियोगा? गोयमा / उपवायं पड़च्च, से तेणट्टेणं०, तं चेव / [4-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि वनस्पतिकायिक कदाचित् कृतयुग्म यावत् कल्योज होते हैं ? [4.2 उ.] गौतम ! उपपात (जन्म) की अपेक्षा ऐसा कहा है कि वनस्पतिकायिक कदाचित कृतयुग्म यावत् कदाचित् कल्योज होते हैं / 5. बेदियाणं जहा नेरतियाणं / [5] द्वीन्द्रिय जीवों की वक्तव्यता नैरयिकों के समान है। 6. एवं जाय बेमाणियाणं। [6] इसी प्रकार (श्रीन्द्रिय से लेकर) यावत् वैमानिक तक कहना चाहिए। 7. सिद्धाणं जहा वणस्सतिकाइयाणं / [7] सिद्धों का कथन वनस्पतिकायिकों के समान है। विवेचन-निष्कर्ष और कारण-वनस्पतिकायिकों और सिद्धों को छोड़कर शेष सर्व जीवों में कृतयुग्म आदि चारों युग्म पाये जाते हैं / बनस्पतिकायिक जीव अनन्त हैं, इसलिए वे स्वाभाविक रूप से कृतयुग्म ही होते हैं / तथापि दूसरी गति से आकर उनमें एक-दो इत्यादि जीव उत्पन्न होते हैं, इसलिए वे जीव कृतयुग्म आदि चारों राशि रूप कहे गए हैं / इसी कारण से यहां कहा गया है कि "वणस्सइकाइया सियकडजुम्मा उववायं पडुच्च"। यद्यपि वनस्पतिकायिक जीव मरण की अपेक्षा भी कृतयुग्मादि चारों राशि रूप होते हैं, किन्तु उसकी यहाँ विवक्षा नहीं की है।' 1. (क) वियाहपण्णत्ति सुत्त भा. 2 (मू. पा. टि.), पृ. 988 (ख) भगवती. म. वृत्ति, पत्र 873 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org