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________________ 324] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 120. एएसि गं भंते ! जीवाणं पोग्गलाणं जाब सन्वपज्जवाण य कतरे कतरेहितो० ? जहा बहुवत्तव्वयाए। [120 प्र.] भगवन् ! इन जीवों और पुद्गलों, यावत् सर्वपर्यायों में कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ? [120 उ.] गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के तृतीय बहुवक्तव्यता पद के अनुसार जानना चाहिए / 121. एएसि णं भंते ! जीवाणं पाउयस्स कम्मगस्स बंधगाणं अबंधगाणं? जहा बहुवत्तव्बयाए जाव प्राउयस्स कम्मरस अबंधगा विसेसाहिया। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०। // पंचवीसहमे सए : ततिओ उद्देसो समत्तो।। [121 प्र.] भगवन् ! आयुकर्म के बन्धक और अबन्धक जीवों में कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? [121 उ.] गौतम ! प्रज्ञापनासूत्र के तीसरे बहुवक्तव्यता पद के अनुसार, यावत्-पायुकर्म के प्रबन्धक जीव विशेषाधिक हैं तक कहना चाहिए / विवेचन-पांच के अल्पबहुत्व का अतिदेश नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य, देव और सिद्ध, इन पांचों के अल्पबहुत्व के लिए यहाँ प्रज्ञापनासूत्र के तीसरे पद का अतिदेश किया गया है। प्रज्ञापनाकथित वक्तव्यता का संक्षिप्त सार निम्नोक्त गाथा में बताया गया है नर-नेरइया देवा सिद्धा, तिरिया कमेण इय होती। थोवमसंख-असंखा, अणंतगुणिया अणंतगुणा // ' अर्थात्- सबसे थोड़े मनुष्य हैं / उनसे नैरयिक असंख्यातगुणे हैं, उनसे देव असंख्यातगुणे हैं, और उनसे सिद्ध अनन्तगुण हैं, तथा उनसे तिर्यञ्च अनन्तगुणे हैं।' - आठ गतियाँ और उनका अल्पबहुत्व-आठ गतियों के नाम एक गाथा के अनुसार इस प्रकार हैं नरकगतिस्तथातिर्यक नरामरगतयः। स्त्री-पुरुषभेदाद्वधा सिद्धिगतिश्चेत्यष्टौ / अर्थात्- (1) नरकगति, (2) पुरुष-तिर्यञ्च, (3) स्त्री-तिर्यञ्च, (तिर्यञ्चनी) (4) पुरुष-मनुष्यगति, (5) स्त्री-मनुष्यगति, (6) पुरुष-देवगति, (7) स्त्री-देवगति और (8) सिद्धगति / __इन पाठों गतियों का अल्पबहुत्व इस प्रकार है-सबसे अल्प मनुष्यिनी (स्त्रियां) हैं, उनसे मनुष्य असंख्यातगुणे हैं, उनसे नैरयिक असंख्यातगुणे हैं, उनसे तिर्यचिनी असंख्यातगुणे हैं, उनसे 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 869 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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