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________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 3] [297 विवेचन-संस्थानों को अवगाहना के अल्पबहत्व का विचार-जो संस्थान जिस संस्थान की अपेक्षा बहुप्रदेशावगाही होता है, वह स्वाभाविकरूप से थोड़ा होता है। परिमण्डलसंस्थान जघन्य बीस प्रदेश की अवगाहना वाला होता है और वृत्त, व्यस्र, चतुरस्र और प्रायत संस्थान जघन्यतः अनुक्रम से पाँच, चार, तीन और दो प्रदेशावगाही होता है। इसलिए परिमण्डलसंस्थान बहुतरप्रदेशावगाही होने से सबसे कम हैं, उनसे वृत्तादि संस्थान अल्प-अल्प प्रदेशावगाही होने से संख्यातगुण अधिक-अधिक होते हैं। अनित्थंस्थसंस्थान वाले पदार्थ, परिमण्डलादि द्वयादि-संयोगी होने से उनसे बहुत अधिक हैं / इसलिए ये उन सबसे असंख्यातगुणा अधिक हैं।। प्रदेश की अपेक्षा अल्पबहुत्व भी इसी प्रकार है, क्योंकि प्रदेश द्रव्यों के अनुसार होते हैं और इसी प्रकार द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थ-रूप से भी अल्पबहुत्व जानना चाहिए। किन्तु द्रव्यार्थरूप के अनित्थंस्थसंस्थान से परिमण्डलसंस्थान प्रदेशार्थरूप से असंख्यातगुणा हैं।' कठिनशब्दार्थ-दवट्ठयाए-द्रव्यरूप अर्थ की अपेक्षा से। पएसट्टयाए-प्रदेशरूप अर्थ की अपेक्षा से। संस्थानों के पांच भेद और उनकी अनन्तता का निरूपरण 7, कति णं भंते ! संठाणा पन्नता? गोयमा ! पंच संठाणा पन्नत्ता, तंजहा-परिमंडले जाव प्रायते। [7 प्र.] भगवन् ! संस्थान कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [7 उ.] गौतम ! संस्थान पांच प्रकार के कहे गए हैं / यथा-परिमण्डल (से लेकर) यावत् प्रायत तक। 8. परिमंडला णं भंते ! संठाणा कि संखेज्जा, असंखेज्जा, अणता? गोयमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता। [8 प्र. भगवन ! परिमण्डलसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं, अथवा अनन्त हैं ? [8 उ.] गौतम ! वे संख्यात नहीं, असंख्यात भी नहीं, किन्तु अनन्त हैं / 6. वट्टा णं भंते ! संठाणा कि संखेज्जा ? एवं चेव। [6 प्र.] भगवन् ! वृत्तसंस्थान संख्यात हैं, असंख्यात हैं, या अनन्त हैं ? [6 उ.] (गौतम ! ) पूर्ववत् (अनन्त) हैं / 10. एवं जाव आयता। [10] इसी प्रकार यावत् आयतसंस्थान तक जानना चाहिए / 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 858 2, वही, पत्र 858 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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