SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2484
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 286 व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र रिकमिश्र का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, (3) उससे वैक्रिय मिश्र का जघन्य योग असंख्यात. गुणा है, (4) उससे औदारिकशरीर का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, (5) उससे वैक्रियशरीर का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, (6) उससे कार्मणशरीर का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है, (7) उससे आहारकमिश्र का जघन्य योग असंख्यातगुणा है, (8) उससे आहारकशरीर का उत्कृष्ट योग असंख्येयगुण है, (9-10) उससे औदारिकमिश्र और वैक्रियमिश्र इन दोनों का उत्कृष्ट योग असंख्यातगृणा है, और दोनों परस्पर तुल्य हैं। (11) उससे असत्यामृषामनोयोग का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। (12) आहारकशरीर का जघन्य योग असंख्यातगुणा है। (13 से 16 तक) उससे तीन प्रकार का मनोयोग और चार प्रकार का वचनयोग, इन सातों का जघन्य योग असंख्यातगुणा है और परस्पर तुल्य है। (20) उससे आहारकशरीर का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है, 21 से 30 तक) उससे औदारिकशरीर, वैक्रिय शरीर, चार प्रकार का मनोयोग और चार प्रकार का वचनयोग, इन दस का उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है और परस्पर तुल्य है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है.' यों कहकर गौतमस्वामी यावत् विचरण करने लगे। // पच्चीसवां शतक : प्रथम उद्देशक सम्पूर्ण / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy