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________________ पढमो उद्देसओ : लेसा प्रथम उद्देशक : लेश्या प्रादि का वर्णन लेश्याओं के भेद, अल्पबहुत्व प्रादि का अतिदेशपूर्वक निरूपण 2. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी[२] उस काल और उस समय में श्री गौतम स्वामी ने राजगृह में यावत् इस प्रकार पूछा३. कति णं भंते ! लेस्सानो पनत्तायो ? गोयमा! छल्लेसानो पन्नत्तायो, तं जहा कण्हलेस्सा जहा पढमसए बितिउद्देसए (स० 1 उ० 2 सु० 13) तहेब लेस्साविभागो अप्पाबहुगं च जाव चविहाणं देवाणं चउठिवहाणं देवोणं मोसगं अप्पाबहुगंति। [3 प्र.] भगवन् ! लेश्याएँ कितनी कही गई हैं ? [3 उ.] गौतम ! छह लेश्याएँ कही गई हैं / यथा कृष्णलेश्या आदि ! शेष वर्णन इसी शास्त्र के प्रथम शतक के द्वितीय उद्देशक (श. 1, उ. 2, सू. 13) में जिस प्रकार किया गया है, तदनुसार यहाँ भी लेश्याओं का विभाग, उनका अल्पबहुत्व, यावत् चार प्रकार के देव और चार प्रकार की देवियों के मिश्रित (सम्मिलित) अल्पबहुत्व-पर्यन्त जानना चाहिए / विवेचन-लेश्याओं का पुनः वर्णन क्यों प्रश्न होता है कि प्रथम शतक में लेश्यागों के स्वरूप, प्रकार आदि का वर्णन किया गया है, फिर इस शतक के प्रथम उद्देशक में उसका पुनः वर्णन क्यों किया गया है ? वृत्तिकार समाधान करते हैं कि अन्य प्रकरण के साथ इस (लेश्या) का सम्बन्ध होने से उस प्रकरण के साथ लेश्या और उनके अल्पबहुत्व का कथन पुन: किया गया है / प्रज्ञापनासूत्र में भी इसी प्रकार का वर्णन मिलता है / ' संसारी जीवों के चौदह भेदों का निरूपण 4. कतिविधा णं भंते ! संसारसमावनगा जीया पन्नत्ता? गोयमा ! चोद्दसविहा संसारसमावनगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा- सुहमा अपज्जत्तगा 1 सुहमा पज्जतगा 2 बायरा अपज्जत्तगा 3 बादरा पज्जत्तगा 4 बेइंदिया अपज्जत्तगा 5 बेइंदिया पज्जत्तगा 6 एवं तेइंदिया 7-8 एवं चरिदिया 9-10 असनियंचे दिया अपज्जत्तगा 11 असन्निपंचेंदिया पज्जत्तगा 12 सन्निपंचिदिया अपज्जत्तगा 13 सन्निपंचिदिया पज्जत्तगा 14 / 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 852 (ख) श्रीमद् भगवतीसूत्र खण्ड 1, शतक 1, उ. 2, सूत्र. 13, पृ. 104 (ग) प्रज्ञापनासूत्र पद 17, 3. 2, पत्र 243-349 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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