________________ 204] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अर्थात्--(१) पृश्चियाँ सात हैं, रत्नप्रभा आदि, (2) कितनी दूर जाने पर नरकावास हैं ? रत्नप्रभा पृथ्वी की मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन है, उसमें से एक हजार योजन ऊपर और नीचे छोड़कर बीच के 1,78,000 योजन में 30 लाख नरकावास हैं। शर्कराप्रभा की मोटाई 1,32,000 योजन, बालुकाप्रभा की 1,28,000 योजन, पंकप्रभा की 1,20,000 योजन, धूमप्रभा की 1,18,000 योजन, तमःप्रभा की 1,16,000 योजन, तमस्तमःप्रभा की 1,08.000 योजन है / (3) संस्थान-पावलिका प्रविष्ट नारकों का संस्थान गोल, त्रिकोण और चतुष्कोण होता है / शेष नारकों का नाना प्रकार का / (4) बाहल्य (मोटाई)-प्रत्येक नरकावास की 3 हजार योजन है। (5) विष्कम्भ परिक्षेप-(लम्बाई-चौड़ाई और परिधि) कुछ नरकावास संख्येय (योजन) विस्तृत है, कुछ असंख्येय योजन विस्तृत हैं। (6) वर्ण-नारकों का वर्ण भयंकर काला, उत्कट रोमांचयुक्त (7) गन्ध---- सर्यादि के मृत कलेवर से भी कई गुनी बुरी गन्ध / (8) स्पर्श-क्षुरधारा, खङ्गधारा प्रादि से भी कई गुना तीक्ष्ण / // द्वितीय शतक : तृतीय उद्देशक समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org