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________________ 158] भ्यास्याप्रप्तिसूत्र ज्ञान-प्रज्ञान-नरक में उत्पन्न होने वाले गर्भज मनुष्य में चार ज्ञान और तीन अज्ञान विकल्प से कहे गए हैं, चूर्णिकार द्वारा इसका समाधान किया गया है कि जो मनुष्य अवधिज्ञान, मनःपर्यायजान और आहारक शरीर प्राप्त करके वहाँ से गिर कर नरक में उत्पन्न होता है, उस मनुष्य में अवधिज्ञान, मनःपर्यायज्ञान और आहारक शरीर उसकी पूर्वावस्था को लेकर समझना चाहिए। इस दष्टि से उक्त मनुष्य में 4 ज्ञान और तीन अज्ञान विकल्प से बताये गए हैं।' जघन्य स्थिति मासपृथक्त्व : कैसे ?---सिद्धान्त यह है कि दो मास से कम आयुष्य (स्थिति) वाला मनुष्य नरकगति में नहीं जाता, इसलिए नरकगति में जाने वाले मनुष्य की जघन्य प्रायु (स्थिति) मासपृथक्त्व होती है।' संवेधकाल-मनुष्यभव की अपेक्षा-मनुष्य होकर यदि नरकगति में उत्पन्न हो तो एक नरकपृथ्वी में चार बार उत्पन्न होता है, उसके पश्चात् वह निश्चय ही तिर्यञ्च होता है / इसलिए मनुष्यभवसम्बन्धी संवेधकाल चार पूर्वकोटि भधिक चार सागरोपम का कहा गया है / चौथे गमक में पांच विशेष बातें-जघन्य स्थिति वाले मनुष्य की नरकोत्पत्ति सम्बन्धी चतुर्थ गमक में पांच नानात्व (विशेषताएँ) पाए जाते हैं—(१) यहाँ शरीरावगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुलपथक्त्व बताई गई है, जबकि प्रथम गमक में जघन्य अंगूलपथक्त्व और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष की बताई गई है / (2) प्रथम गमक में 4 ज्ञान और 3 अज्ञान भजना से बताए गए हैं, परन्तु यहां 3 ज्ञान और 3 प्रज्ञान भजना से बतलाए गए है; क्योंकि जघन्य स्थिति वाले मनुष्य में इन्हीं का सदभाव होता है / (3) प्रथम गमक में 6 समूदधात बतलाये गए हैं, जबकि यहाँ जघन्य स्थिति वाले मनष्य में प्राहारकसमदघात नहीं पाया जाता। (4-5) प्रथम गमक में स्थिति और अनुबन्ध जघन्य मासपृथक्त्व, उत्कृष्ट पूर्वकोटि बतलाया गया है, जबकि यहाँ जघन्य और उत्कृष्ट मास पृथक्त्व ही बतलाया गया है। शेष गमकों का कथन स्पष्ट है, स्वयमेव चिन्तन कर लेना चाहिए। शर्कराप्रभानरक में उत्पन्न होनेवाले पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्य में उपपातपरिमारणादि द्वारों की प्ररूपणा 106. पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसनिमगुस्से गं भंते ! जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए नेरइएसु जाव उववज्जित्तए से णं भंते ! केवति जाव उववजेज्जा? गोयमा ! जहन्नेणं सागरोवमट्टितीएसु, उक्कोसेणं तिसागरोवमठितीएसु उववज्जेज्जा। [106 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी मनुष्य, जो शर्कराप्रभापृथ्वी के नै रयिकों में उत्पन्न होने योग्य हो; वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? . - .. .------ 1. (क) ओहिनाण-मणपज्जवनाण-आहारय-शरीराणि लद्धणं परिसाडित्ता उववज्जति ।'–भगवती. चणि (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 817 2. वहीं, पत्र 817 3. बहो, पत्र 817 4. वही, पत्र 817 . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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