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________________ 14.] [ध्याल्याप्राप्तिसूत्र गोयमा! संखेज्जवासाउयसण्णिपंचेंदिय० जाव उघवज्जंति, नो प्रसंखेज्जवासाउय० जाव सपवज्जति। वन ! यदि नैरयिक संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से पाकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संजी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से पाकर उत्पन्न होते हैं, अथवा असंख्यात वर्ष की प्राय वाले संज्ञी-पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में से पाकर उत्पन्न होते हैं ? [51 उ.] गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पंचेन्द्रियतियंचयोनिकों में से पाकर उत्पन्न नहीं होते। 52. जदि संखेज्जवासाउयसन्निपंचेंदिय जाव उववज्जति कि जलचरेहितो उवधज्जति ? 0 पुच्छा / गोयमा ! जलचरेहितो उववज्जति जहा प्रसन्नी जाव पज्जत्तएहितो उववज्जंति, नो अपज्जत्तएहितो उववज्जति / [52 प्र.] भगवन् ! यदि नैरयिक संख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी-तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों में से पाकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे जलचरों में से आकर उत्पन्न होते हैं, स्थलचरों में से अथवा खेचरों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? [52 उ.] गौतम ! वे जलचरों में से प्राकर उत्पन्न होते हैं, इत्यादि सब असंज्ञी के समान, यावत् पर्याप्तकों में से पाकर उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्तकों में से नहीं; (यहाँ तक कहना चाहिए।) 53. पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसनिपंचेंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए नेरइएस उवयज्जित्तए से णं भंते ! कतिसु पुढवीसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! सत्तसु पुढवीसु उववज्जेज्जा, तं जहा-रयणप्पभाए जाव अहेसत्तमाए / [53 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त-संख्येयवर्षायुष्क-संजीपंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जो जीव, नरकवियों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितनी नरकपृथ्वियों में उत्पन्न होता है ? [53 उ.] गौतम ! वह सातों ही नरकवियों में उत्पन्न होता है / यथा-रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तम पृथ्वी। विवेचन-निष्कर्ष-उपर्युक्त तीन प्रश्नों (51 से 53 तक) के उत्तर का सार यह है कि जो नैरयिक संज्ञी पंचेन्द्रियतियंञ्चयोनिकों में से पाते हैं, वे संख्यातवर्ष की प्राय वाले, पर्याप्तक, जलचर, स्थलचर, खेचर तीनों से आकर उत्पन्न होते हैं / ' 1. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण-युक्त) भा. 2, पृ. 911 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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