________________ चौबीसवां शतक : उद्देशक 1] [129 गोयमा ! चत्तारि सन्नायो पन्नताओ, तं जहा-पाहारसण्णा भयसण्णा मेहुणसण्णा परिगहसण्णा। [15 प्र.] भगवन् ! उन जीवों के कितनी संज्ञाएं कही गई हैं ? [15 उ.] गौतम ! उनके चार संज्ञाएं कहो गई हैं / यथा-पाहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा और परिग्रहसंज्ञा। 16. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति कसाया पन्नत्ता? गोयमा ! चत्तारि कसाया पन्नत्ता, तं जहा–कोहकसाये माणकसाये मायाकसाये लोभकसाये / [16 प्र. भगवन् ! उन जीवों के कितने कषाय होते हैं ? [16 उ.] गौतम ! उनके चार कषाय होते हैं / यथा--क्रोधकषाय, मानकषाय, मायाकषाय और लोभकषाय / 17. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति इंदिया पन्नत्ता ? गोयमा ! पंच इंदिया पन्नत्ता, तं जहा --सोतिदिए चक्खिदिए जाव फासिदिए / [17 प्र. भगवन् ! उन जीवों के कितनी इन्द्रियाँ कही गई हैं ? [17 उ.] गौतम ! उनके पांच इन्द्रियाँ कही हैं। यथा-श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, यावत् स्पर्शेन्द्रिय / 18. तेसि णं भंते ! जीवाणं कति समुग्याया पन्नत्ता? गोयमा ! तभी समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा-वेयणासमुग्धाए कसायसमुग्घाए मारणंतियसमुग्धाए / [18 प्र.] भगवन् ! उन जीवों के कितने समुद्घात कहे हैं ? [18 उ.] गौतम ! उनके तीन समुद्घात कहे हैं / यथा-वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात / 19. ते णं भंते जीवा कि सायावेदगा, असायावेदगा? गोयमा ! सायावेदगा वि, असाताबेदगा वि / [19 प्र.] भगवन् ! वे जीव साता-वेदक हैं या असाता-वेदक ? [16 उ. गौतम ! वे सातावेदक भी हैं और असातावेदक भी / 20. ते णं भंते ! जीवा कि इथिवेदगा, पुरिसवेदगा, नपुंसगवेदगा? गोयमा ! नो इत्थिवेदगा, नो पुरिसवेदगा, नपुंसगवेदगा। [20 प्र.] भगवन् ! वे जीव स्त्रीवेदक है, पुरुषवेदक हैं या नपुसकवेदक हैं ? [20 उ.] गौतम ! वे न तो स्त्रीवेदक होते हैं और न ही पुरुषवेदक होते हैं, किन्तु नपुंसकवेदक हैं। 21. तेसि णं भंते ! जीवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org