________________ 90] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र * इन तीनों शतकों के प्रत्येक वर्ग के दस-दस उद्देशक इस प्रकार हैं—(१) मूल, (2) कन्द, (3) स्कन्ध, (4) त्वचा (छाल), (5) शाखा, (6) प्रवाल, (7) पत्र, (8) पुष्प, (9) फल और (10) बीज। * इक्कीसवें शतक में 8 वर्ग हैं। प्रत्येक वर्ग के 10-10 उद्देशक होने से आठ वर्गों के कुल 80 उद्देशक होते हैं / बाईसवें शतक के 6 वर्ग हैं और प्रत्येक वर्ग के दस-दस उद्देशक होने से 60 उद्देशक होते हैं / तेईसवें शतक के 5 वर्ग हैं / प्रत्येक वर्ग के दस-दस उद्देशक होने से 50 उद्देशक होते हैं। * इन तीनों शतकों में प्रतिपाद्य विषयों के पूर्वोक्त उत्पत्ति प्रादि द्वारों की चर्चा में प्राय: इक्कीसवें शतक के प्रथम वर्ग या चतुर्थ वर्ग अथवा बाईसवें शतक के प्रथम वर्ग का अथवा पालक वर्ग का अतिदेश किया गया है।' 1. वियाहपण्णत्तिसूत्तं भा, 2 (मूलपाठ-टिएणयुक्त), पृ. 890 से 903 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org