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________________ 80] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 34. [1] पुढविकाइयाणं पुच्छा। गोयमा ! पुढ विकाइया नो छक्कसमज्जिया, नो नोछक्क समज्जिया, नो छक्केण य नोछक्केण य समज्जिया, छक्केहि समज्जिया वि, छक्केहि य नोछक्केण य समज्जिया वि। [34-1 प्र. भगवन् ! पृथ्वी कायिक जीव षट्क-समर्जित हैं ? इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् / [34-1 उ.! मौतम ! पृथ्वीकायिक जीव न तो षट्क-समजित हैं, न नो-षट्क-सजित हैं और न एक षट्क और एक नो-षट्क से समजित हैं; किन्तु अनेक षट्क-समजित हैं तथा अनेक षटक और एक नो-षट्क से समजित भी हैं। [2] से केणठेणं जाव समज्जिता वि ? गोयमा ! जे णं पुढविकाइया णेगेहि छक्करहिं पवेसणगं पविसंति ते णं पुढविकाइया छक्केहि समज्जिया / जे णं पुढविकाइया णेगेहि छक्कएहि; अन्नेणं य जहन्नेणं एक्केण वा दोहि वा तिहि वा, उक्कोसेणं पंचएणं पवेसणएणं पविसंति ते णं पुढ विकाइया छक्केहि य नोमकेण य समज्जिया। से तेणठेणं जाव समज्जिया वि / [34-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि (पृथ्वीकायिक जीव यावत् अनेक षटक-समजित हैं तथा अनेक षटक और एक नो-षटक-) समजित भी हैं ? 134-2 उ.] गौतम ! जो पृथ्वीकायिक जीव अनेक पटक से प्रवेश करते हैं, वे अनेक-पटकसमर्जित हैं तथा जो पृथ्वीकायिक अनेक षट्क से तथा जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट पांच संख्या में प्रवेश करते हैं, वे अनेक-पटक और एक नो-षट्क-समर्जित कहलाते हैं / हे गौतम ! इसीलिए कहा गया है कि पृथ्वीकायिक जीव यावत् एक नो-षट्क-समर्जित हैं / 35. एवं जाव वणस्सइकाइया, बेइंदिया जाव वेमाणिया। [35] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक समझना चाहिए। द्वीन्द्रिय से ले कर यावत् वैमानिकों तक पूर्ववत् / 36. सिद्धा जहा नेरइया / [36] सिद्धों का कथन नै रयिकों के समान है / विवेचन--षटक-समजित प्रादि की परिभाषा–जिसका छह का परिमाण हो, उसे षट्क कहते हैं। षट्क से यानी छह के समूह से जो समजित हों अर्थात ----पिण्डित–एकत्रित हों, वह षट्क-समजित हैं / भाव यह है कि एक समय में एक साथ जो उत्पन्न होते हैं, यदि उनकी राशि छह हो तो वे षट्क-समजित कहलाते हैं। जो एक साथ एक समय में एक, दो, तीन, चार या पांच उत्पन्न हुए हों, वे नोषट्क-समजित कहलाते हैं। जो एक समय में एक साथ एक षट्क के रूप में (छह) उत्पन्न हुए हों, साथ ही एक साथ एक समय में एक से लेकर पांच तक यानी सात, आठ, नौ, दस और ग्यारह तक उत्पन्न हुए हों, वे एक षट्क, एक नो-षट्क-समजित कहलाते हैं। जो एक समय में, एक साथ छह-छह के अनेक समूहों के रूप में उत्पन्न हुए हों, वे अनेकषट्क-समजित कहलाते हैं / जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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