________________ बोसवां शतक : उद्देशक 10] फलितार्थ-चारों जाति के देव और नारक निरुपक्रमायुष्क होते हैं। शेष संसारी जीवों में दोनों ही प्रकार की आयु वाले जीव होते हैं। मनुष्यों और तिर्यञ्चों में असंख्यात वर्ष की आयु वाले तथा चरमशरीरी मनुष्य और उत्तमपुरुष निरुपक्रमायुष्क होते हैं / शेष मनुष्य, तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और एकेन्द्रिय जीवों का दोनों ही प्रकार का प्रायुष्य होता है -सोपक्रम भी, निरुपक्रम भी / ' चौवीस दण्डकों में उत्पत्ति और उद वर्तना की प्रात्मोपक्रम-परोपक्रम आदि विभिन्न पहलुओं से प्ररूपरणा 7. नेरतिया णं भंते ! कि प्रानोवक्कमेण उववज्जति, परोवक्कमेणं उववज्जति, निरुवक्कमेणं उववति ? गोयमा! आतोवक्कमेण वि उववज्जति, परोवक्कमेण वि उववज्जंति, निरुवक्कमेण वि उवयजति / [7 प्र.] भगवन् ! नै रयिक जीव, प्रात्मोपक्रम से, परोक्रम से या निरुपक्रम से उत्पन्न होते हैं ? [7 उ.] गौतम ! वे प्रात्मोपक्रम से भी उत्पन्न होते हैं, परोपक्रम से भी और निरुपक्रम से भी उत्पन्न होते हैं। 8. एवं जाव वेमाणिया। [8] इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक कहना चाहिए। 1. नेरतिया णं भते ! कि आरोवक्कमेणं उग्वीति, परोवक्कमेणं उध्वटंति, निरुवक्कमेणं उम्वति ? गोयमा ! नो प्रापोवक्कमेणं उध्वति, नो परोवक्कमेणं उन्वटेंति, निरुवक्कमेणं उम्वति। [9 प्र.] भगवन् ! नैरयिक आत्मोपक्रम से उद्वर्त्तते (मरते) हैं अथवा परोपक्रम से या निरुपक्रम से उद्वर्तते हैं ? [9 उ.] गौतम ! वे न तो आत्मोपक्रम से उद्वर्त्तते हैं और न परोपक्रम से; किन्तु निरुपक्रम से उद्वतित होते हैं। 10. एवं जाव थणियकुमारा। [10] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारपर्यन्त कहना चाहिए। 1. 'वेवा नेर इया विय, असंखवासाउया य तिरि-मणुआ। उत्तमपुरिसा य तहा चरिमसरोरा निरुवक्कमा // 1 // सेसा संसारत्था हवेज, सोवक्कमा उ इयरे य। सोवक्कम-मिरवक्कम-भेओ, भणिओ समासेणं // 2 // ' ---भगवती. अ. ब. पत्र 795 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org