________________ 1] [ग्याल्याप्रज्ञप्तितूब 13. सुहमपरिणओ अणंतपएसियो वि एवं चेव / [13] सूक्ष्मपरिणाम वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के विषय में भी इसी प्रकार भंग कहने चाहिए। विवेचन-दशप्रदेशी स्कन्ध के वर्णादि-विषयक भंग-दशप्रदेशी स्कन्ध में वर्ण के 237, गन्ध के 6, रस के 237, स्पर्श के 36, ये सब मिलाकर 516 भंग होते हैं। ___ इसी प्रकार संख्यात-प्रदेशी, असंख्यात-प्रदेशी और सूक्ष्मपरिणाम वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के विषय में भी इसी के समान भंग कहने चाहिए। बादरपरिणामी अनन्तप्रदेशी स्कन्ध में वर्णादि-प्ररूपण 14. बादरपरिणए णं भंते ! प्रणंतपएसिए खंधे कतिवणे ? एवं जहां अट्ठारसमसए जाव सिय अट्ठफासे पन्नते। वण्ण-गंध-रसा जहा दसपएसियस्स। जति चउफासे-सव्वे कक्खडे, सय्वे गरुए, सव्वे सीए, सम्वे निद्ध 1; सब्वे कक्खडे, सव्वे गरुए, सब्वे सोए, सत्वे लुक्खे 2; सब्वे कक्खडे, सव्वे गरुए, सव्वे उसिणे, सब्बे निद्ध 3; सम्वे कवखरे, सवे गरुए, सब्वे उसिणे, सब्वे लुक्खे 4; सव्वे कक्खडे, सम्वे लहुए, सव्वे सीए, सव्वे निद्धे 5; सब्वे कक्खडे, सव्वे लहुए, सब्वे सोए, सब्वे लुक्खे 6; सव्वे कक्खडे, सव्वे लहुए, सध्वे उसिणे, सब्वे निद्ध 7; सन्वे कवखडे, सब्वे लहुए, सम्वे उसिणे, सम्वे लुक्खे 8; सर्व मउए, सव्वे गरुए, सम्वे सीए, सव्वे निद्ध ; सब्वे मउए, सवे गरुए, सब्बे सीए, सव्वे लुक्खे 10; सम्वे मउए, सब्वे गरुए, सम्वे उसिणे, सम्वे निद्ध 11; सव्वे मउए, सव्वे गरुए, सव्वे उसिणे, सव्वे लुक्खे 12; सब्वे मउए, सव्वे लहुए, सच्चे सीए, सब्वे निद्ध 13; सव्वे मउए, सब्वे लहुए, सब्वे सीए, सम्बे लुक्खे 14; सव्वे मउए, सब्वे लहुए, सब्वे उसिणे, सव्वे निद्ध 15; सव्वे मउए, सके लहुए, सब्वे उसिणे, सव्वे लुक्खे 16; एए सोलस भंगा। जह पंचफासे-सव कक्खडे, सव्वे गरुए, सव्वे सीए, देसे निद्ध, देसे लुक्खे 1; सव्वे कक्खडे, सम्वे गरुए, सम्वे सीए, देसे निद्ध, देसा लुक्खा 2; सम्वे कक्खडे, सम्वे गरुए, सव्वे सीए, देसा निद्धा, देसे लुक्खे 3; सव्वे कक्खडे, सव्वे गरुए, सम्वे सीए, देसा निद्धा, देसा लुक्खा 4 / सव्वे कक्खडे, सच्चे गरुए, सम्बे उसिणे, देसे निद्ध, देसे लुक्खे० 4; सव्वे कक्खडे, सव्ये लहुए, सव्वे सीए, देसे निद्ध, देसे लुक्खे० 4; सम्वे कक्खडे, सन्चे लहुए, सब्वे उसिणे, देसे निद्ध, देसे लुक्खे० 4; एवं एए कक्खडेणं सोलस भंगा। सव्वे मउए, सवे गरुए, सव्वे सीए, देसे निद्ध, देसे लुक्खे० 4; एवं मउरण वि सोलस भंगा। एवं बत्तीसं भंगा / सम्वे कक्खडे, सज्वे गरुए, सम्वे निद्ध, देसे सीए, देसे उसिणे० 4; सम्वे कक्खडे, सम्बे गरुए, सब्वे लुक्खे, देसे सोए, वेसे उसिणे 4; 0 एए बत्तीसं भंगा। सब्वे कक्खडे, सव्वे सीए, सव्वे निद्ध, देसे गरुए, इसे लहुए 4; एत्थ वि बत्तीसं भंगा। सम्वे गरुए, सव्वे सीए, सम्वे निद्ध, देसे कक्खडे, देसे मउए 40 एस्थ वि बत्तीसं भंगा। एवं सम्वेते पंचफासे अट्ठावीसं भंगसयं भवति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org