________________ द्वितीय उद्देशक राशियुग्म : न्योजराशि वाले चौवीस दण्डकों में उपपातादि वक्तव्यता 750 752 756 758 तृतीय उद्देशक राशियुग्म : द्वापरयुग्मराशि वाले चौवीस दण्डकों में उपपातादि प्ररूपणा चतुर्थ उद्देशक राशियुग्म : कल्योजराशिरूप चौवीस दण्डकों में उपपातादि प्ररूपणा पांच से आठ उद्देशक कृष्णलेश्या वाले राशियुग्म में कृतयुग्मादिरूप चौवीस दण्डकों में उपपातादि प्ररूपणा नौ से अट्ठाईस उद्देशक नीलादि लेश्यानों के आधार से नारकादि के उपपातादि का निरूपण उनतीस से छप्पन्न उद्देशक पूर्व के अट्ठाईस उद्देशकों के प्रतिदेशपूर्वक भवसिद्धिक सम्बन्धो अट्ठाईस उद्देशक सत्तावन से चौरासी उद्देशक पूर्व के अट्ठाईस उद्देशकों के अनुसार प्रभवसिद्धिक-सम्बन्धी अट्टाईल उद्देशक पचासी से एकसौ बारह उद्देशक सम्यग्दृष्टि सम्बन्धी अट्ठाईस उद्देशक एकसौ तेरह से एकसौ चालीस उद्देशक मिथ्यादृष्टि की अपेक्षा अट्ठाईस उद्देशकों का निर्देश एकसौ इकतालीस से एकसौ अड़सठ उद्देशक कृष्णपाक्षिक की अपेक्षा पूर्ववत् अट्ठाईस उद्देशक एकसौ उनहत्तर से एकसौ छियानवे उद्देशक शुक्लपाक्षिक के प्राश्रित पूर्ववत् अट्ठाईस उद्देशक उपसंहार व्याख्याप्रज्ञप्ति के शतक, उद्देशक और पदों का परिमाण अन्तिम मंगल: श्रीसंघ-जयवाद पुस्तक-लिपिकार द्वारा किया गया नमस्कार भगवती व्याख्याप्रज्ञप्ति की उद्देशविधि 762 763 765 765 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org