________________ अनध्याय काल [803 गर्जन और विद्युत् प्रायः ऋतु-स्वभाव से ही होता है / अतः आर्द्रा से स्वाति नक्षत्र पर्यन्त अनध्याय नहीं माना जाता। 5. निर्धात-- बिना बादल के आकाश में व्यन्त रादिकृत घोर गर्जना होने पर, या बादलों सहित अाकाश में कड़कने पर दो प्रहर तक अस्वाध्याय काल है। 6. यूपक-शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया को सन्ध्या की प्रभा और चन्द्रप्रभा के मिलने को यूपक कहा जाता है / इन दिनों प्रहर रात्रि पर्यन्त स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। 7. यक्षादीप्त-कभी किसी दिशा में बिजली चमकने जैसा, थोड़े थोड़े समय पीछे जो प्रकाश होता है वह यक्षादीप्त कहलाता है / अतः अाकाश में जब तक यक्षाकार दीखता रहे तब तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। 8. धूमिका-कृष्ण-कार्तिक से लेकर माघ तक का समय मेघों का गर्भमास होता है। इसमें धूम्र वर्ण को सूक्ष्म जलरूप धुध पड़ती है। वह धूमिका कृष्ण कहलाती है / जब तक यह धुध पड़ती रहे तब तक स्वाध्याय नहीं करना चारिए / 9. मिहिकाश्वेत-शीतकाल में श्वेत वर्ण की सूक्ष्म जलरूप धुध मिहिका कहलाती है / जब तक यह गिरती रहे, तब तक अस्वाध्याय काल है। 10. रज-उद्धात-वायु के कारण आकाश में चारों ओर धलि छा जाती है / जब तक यह घलि फैली रहती है, स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। उपरोक्त दस कारण आकाश सम्बन्धी अस्वाध्याय के हैं। प्रौदारिक शरीर सम्बन्धी दस अनध्याय 11-12-13 हड्डो, मांस और रुधिर-पंचेन्द्रिय तिर्यच की हड्डी, मांस और रुधिर यदि सामने दिखाई दें, तो जब तक वहाँ से वस्तुएँ उठाई न जाएँ तब तक अस्वाध्याय है। बत्तिकार आस-पास के 60 हाथ तक इन वस्तुओं के होने पर अस्वाध्याय मानते हैं / इसी प्रकार मनुष्य सम्बन्धी अस्थि, मांस और रुधिर का भी अनध्याय माना जाता है। विशेषता इतनी है कि इनका अस्वाध्याय सौ हाथ तक तथा एक दिन-रात का होता है। स्त्री के मासिक धर्म का अस्वाध्याय तीन दिन तक / बालक एवं बालिका के जन्म का प्रस्वाध्याय क्रमशः सात एवं आठ दिन पर्यन्त का माना जाता है। 14. अशुचि-मल-मूत्र सामने दिखाई देने तक अस्वाध्याय है / 15. श्मशान–श्मशानभूमि के चारों ओर सौ-सौ हाथ पर्यन्त अस्वाध्याय माना जाता है / 16. चन्द्रग्रहण --चन्द्रग्रहण होने पर जघन्य आठ, मध्यम बारह और उत्कृष्ट सोलह प्रहर पर्यन्त स्वाध्याय नहीं करना चाहिए / 17. सूर्यग्रहण-सूर्यग्रहण होने पर भी क्रमश: पाठ, बारह और सोलह प्रहर पर्यन्त अस्वाध्यायकाल माना गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org