________________ 752 व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र प्रज्ञापनानिर्दिष्ट तथ्य का संक्षिप्त निरूपण नैरयिक जीवों को दोनों प्रकार की वेदना होती है। जो संज्ञी जीवों से जाकर उत्पन्न होते हैं, वे निदा वेदना वेदते हैं और असंज्ञी से जाकर उत्पन्न होने वाले अनिदा वेदना वेदते हैं / इसी प्रकार असुरकुमार आदि देवों के विषय में भी जानना चाहिए। पृथ्वी कायिक प्रादि से लेकर चतुरिन्द्रिय जीवों तक केवल 'अनिदा' वेदना वेदते हैं / पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च, मनुष्य और वाणव्यन्तर, ये नैरयिकों के समान दोनों प्रकार की वेदना वेदते हैं। ज्योतिष्क और वैमानिक भी दोनों प्रकार की वेदना वेदते हैं। किन्तु दूसरों की अपेक्षा उनके कारण में अन्तर है / जो मायी मिथ्यादृष्टि देव हैं, वे अनिदा वेदना वेदते हैं जबकि अमायी सम्यग्दृष्टि देव निदावेदना वेदते हैं।' // उन्नीसवाँ शतक : पञ्चम उद्देशक समाप्त / / 1. (क) प्रज्ञापनासूत्र पद-३५, पत्र 556-557 (ख) भगवतीमूत्र, खण्ड 4, (गुजराती अनुवाद) (पं. भगवानदासजी), प. 89 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org