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________________ उन्नीसवां शतक : उद्देशक 3] 10. तेसि णं भंते ! जीवाणं एवं सन्ना ति वा पन्ना ति वा मणो ति का वई ति वा 'प्रम्हे णं प्राहारमाहारेमो' ? णो तिण8 सम8, प्राहारेंति पुण ते / [10 प्र.] भगवन् ! उन जीवों को-'हम पाहार करते हैं', ऐसी संज्ञा, प्रज्ञा, मन और वचन होते हैं ? [10 उ.] हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। अर्थात्--उन जीवों को हम पाहार करते हैं, ऐमी संजा, प्रज्ञा, आदि नहीं होते / फिर भी वे आहार तो करते हैं / 11. तेसि णं भंते ! जीवाणं एवं सन्ना ति वा जाव वयो ति वा अम्हे णं इट्ठाणि8 फासे पडिसंवेदेमो? नो तिण? सम8, पडिसंवेदेति पुण ते। {11 प्र.] भगवन् ! क्या उन जोवों को यह संज्ञा यावत् वचन होता है, कि हम इष्ट या अनिष्ट स्पर्श का अनुभव करते हैं ? [11 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है, फिर भी वे वेदन (अनुभव) तो करते 12. ते णं भंते ! जोवा कि पाणातिवाए उवक्खाइज्जति, मुसावाए अदिग्णा० जाव मिच्छादसणसल्ले उवक्खाइज्जति ? गोयमा ! पाणातिवाए वि उवक्खाइज्जति जाव मिच्छादसणसल्ले नि उवक्खाइज्जति, जेसि पि णं जीवाणं ते जीवा 'एवमाहिज्जति' तेसि पिणं जीवाणं नो विग्णाए नाणते / [12 प्र.] भगवन् ! क्या वे (पृथ्वीकायिक) जीव प्राणातिपात मृषावाद अदत्तादान, यावत् मिथ्यादर्शनशल्य में रहे हुए हैं ? / [12 उ.] हाँ, गौतम ! वे जीव प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य में रहे हुए हैं। तथा वे जीव, दूसरे जिन पृथ्वीकायिकादि जीवों की हिंसादि करते हैं, उन्हें भी, ये जीव हमारी हिंसादि करने वाले हैं, ऐसा भेद ज्ञात नहीं होता। 13. ते गं भंते ! जोया कओहितो उपवज्जति ? कि नेरइएहितो उबवज्जति ? एवं जहा बक्कतोए पुढविकाइयाणं उववातो तहा भाणितव्वो। [13 प्र.] भगवन् ! ये पृथ्वीकायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या ये नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, इत्यादि प्रश्न ? [13 उ.] गौतम ! जिस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र के छठे व्युत्क्रान्तिपद में पृथ्वी कायिक जीवों का उत्पाद कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए / 14. तेसि णं भंते ! जीवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतीमुहतं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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