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________________ अठारहवां शतक : उद्देशक 10 यथा--द्रव्यमास और कालमास / उनमें से जो कालमास हैं, वे श्रावण से लेकर आषाढ़-मास-पर्यन्त बारह हैं। यथा--श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माध, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, और आषाढ़ / ये (बारह मास) श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं / द्रव्य-मास दो प्रकार का है। यथा--(१) अर्थमाष और (2) धान्यमाष / उनमें से अर्थमाष (सोना-चांदी तोलने का माशा) दो प्रकार का है यथा--(१) स्वर्णमाष और (2) रौप्यमाष / ये दोनों माष श्रमण निग्रंथों के लिए अभक्ष्य हैं। धान्यमाष दो प्रकार का है--यथा---(१) शस्त्रपरिणत और (2) अशस्त्रपरिणत / इत्यादि सभी पालापक धान्य-सरिसव के समान कहने चाहिए; यावत् इसी कारण से, हे सोमिल ! कहा गया है कि 'मास' भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है। 26. [1] कुलत्था ते भंते ! कि भक्खया, अभक्खेया ? सोमिला ! कुलस्था मे भक्खेया वि, अमक्ख्या वि / [26-1 प्र.] भगवन् ! आपके लिए 'कुलत्थ' भक्ष्य हैं अथवा अभक्ष्य हैं ? [26-1 उ.] सोमिल ! 'कुलत्थ' मेरे लिए भक्ष्य भी हैं और अभक्ष्य भी हैं / [2] से केण?णं जाव अभक्खेया वि? से नणं सोमिला ! बंमण्णएसु नएसु दुविहा कुलस्था पन्नता, तं जहा-इस्थिकुलस्था य धन्नकुलत्था य / तस्य गं जे ते इत्थिकुलत्था ते तिविहा पन्नत्ता, तं जहा---कुलवधू ति वा कुलमाउया ति वा कुलध्या ति वा; ते णं समणाणं निग्गंथाणं अभक्खेया। तत्थ णं जे ते धन्नकुलत्था एवं जहा धन्नसरिसवा जाव से तण?णं जाव अमक्या वि / [26-2 प्र.] भगवन् ऐसा क्यों कहते हैं कि कुलत्थं यावत् अभक्ष्य भी हैं / [26-2 उ.] सोमिल ! तुम्हारे ब्राह्मणनयों (शास्त्रों) में कुलत्था दो प्रकार की कही गई हैं। यथा--(१) स्त्रीकुलत्था (कुलस्था--कुलांगना) और (2) धान्यकुलत्था (कुलथी धान)। स्त्रीकुलत्था तीन प्रकार की कही गई है। यथा--(१) कुलवधू या (2) कुलमाता, अथवा (3) कुलकन्या। ये तीनों श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए अभक्ष्य हैं। उनमें से जो धान्यकुलत्था है, उसके सभी पालापक धान्य-सरिसव के समान हैं, यावत्--'हे सोमिल ! इसीलिए कहा गया है कि 'धान्यकुलत्था भक्ष्य भी है और अभक्ष्य भी है', यहाँ तक कहना चाहिए। विवेचन--'मास' और 'कुलस्था' भक्ष्य कैसे और अभक्ष्य कैसे ?--'मास' शब्द का विश्लेषण--'मास' प्राकृतभाषा का श्लिष्ट शब्द है / संस्कृत में इसके दो रूप होते हैं माष और मास / इन्हें ही दूसरे शब्दों में द्रव्यमाष और कालमास कहा जाता है। कालरूप मास श्रावण से लेकर आषाढ़ तक 12 महीनों का है, वह श्रमणों के लिए अभक्ष्य है। द्रव्यमाष में जो सोना चांदी तोलने का माशा है (12 माशे का एक तोला), वह अभक्ष्य है, किन्तु धान्यरूपमाष (उड़द) शस्त्रपरिणत, एषणोय, याचित और लब्ध हों तो श्रमणों के लिए भक्ष्य हैं, किन्तु जो अशस्त्रपरिणत, अनेषणीय, अयाचित और अलब्ध हैं, वे अभक्ष्य-अग्राह्य हैं।' 1. (क) भगवती, अ, वृत्ति, पत्र 760, (ख) भगवती, विवेचन भा. 6, (पं. घेवरचन्दजी) पृ. 2763 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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