________________ 710] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कठिन शब्दार्थ-जक्खाएसेण-यक्ष के आवेश से / आइ?—ाविष्ट--अधिष्ठित / पाहच्चकदाचित या कभी-कभी / असावज्जाओ.-असावद्य-निरवद्य (पाप-दोष रहित) / अपरोवघातियाओअपरोपघातिक-दूसरों को आघात नहीं पहुँचाने वाली / असच्चामोसं-असत्यामृषा-जो न तो सत्य हो, न मृषा हो, ऐसी प्रादेशादिवाचक व्यवहारभाषा / ' उपधि एवं परिग्रह : प्रकारत्रय तथा नैरयिकादि में उपधि एवं परिग्रह को यथार्थ प्ररूपणा 3. कतिविधे णं भंते ! उवही पन्नत्ते ? गोयमा ! तिविहे उवही पन्नत्ते, तं जहा--कम्मोवही सरीरोवही बाहिरभंडमत्तोवगरणोवहीं / [3 प्र.] भगवन् ! उपधि कितने प्रकार की कही गई है ? [3 उ.] गौतम ! उपधि तीन प्रकार की कही गई है। यथा—(१) कर्मोपधि, (2) शरीरोपधि और (3) बाह्यभाण्डमात्रोपकरण उपधि / 4. नेरइयाणं भंते ! 0 पुच्छा / गोयमा ! दुविहे उबही पन्नत्ते, तं जहा–कम्मोवही य सरीरोवही य / [4 प्र.] भगवन् ! नै रयिकों के कितने प्रकार की उपधि होती है ? [4 उ.] गौतम ! उनके दो प्रकार की उपधि कही गई है / वह इस प्रकार-(१) कर्मोपधि और (2) शरीरोपधि / 5. सेसाणं तिविहा उवही एगिदियवज्जाणं जाव वेमाणियाणं। [5] एकेन्द्रिय जीवों को छोड़ कर यावत् वैमानिक तक शेष सभी जीवों के (पूर्वोक्त) तीन प्रकार की उपधि होती है / 6. एगिदियाणं दुविहे, तं जहा-कम्मोवही य सरीरोवही य / [6] एकेन्द्रिय जीवों के दो प्रकार की उपधि होती है। यथा--कर्मोपधि और शरीरोपधि / 7. कतिविहे णं भंते ! उवही पन्नत्ते ? गोयमा ! तिविहे उवही पन्नत्ते, तं जहा–सच्चित्ते अचित्ते मीसए। [7 प्र.] भगवन् ! (प्रकारान्तर से) उपधि कितने प्रकार की कही गई है ? 7i उ.] गौतम ! (प्रकारान्तर से) उपधि तीन प्रकार की कही गई है। यथा-सचित्त, अचित्त और मिश्र। 8. एवं नेरइयाण वि। [=] इसी प्रकार नैरयिकों के भी तीन प्रकार की उपधि होती है। 1. भगवती., विवेचन, भाग-६ (पं. घेवरचन्दजी) पृ. 2714 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org