________________ 708] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्रं सूक्ष्म अनन्तप्रदेशी स्कन्ध में चार स्पर्श पूर्वोक्त शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष, ये चार स्पर्श पाए जाते हैं। बादर अनन्तप्रदेशी एकन्ध में चार से पाठ स्पर्श तक--चार हों तो मदु और कर्कश में से कोई एक, गुरु और लघु में से कोई एक, शीत और उष्ण में से कोई एक और स्निग्ध एवं रूक्ष में से कोई एक, इस प्रकार चार स्पर्श पाए जाते हैं। पांच स्पर्श हों तो चार में से किसी भी युग्म के दो और शेष तीन युग्मों में से एक-एक / छह स्पर्श हों तो दो युग्मों के दो-दो, और शेष दो युग्मों में से एक-एक, यों 6 स्पर्श पाए जाते हैं। सात स्पर्श हों तो तीन युग्मों के दो-दो, और एक युग्म में से एक, और आठ स्पर्श हों तो चारों युग्मों के दो-दो स्पर्श पाए जाते हैं।' // अठारहवां शतक : छठा उद्देशक समाप्त / 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र-७४८-७४९ (ख) भगवती. विवेचन (पं. घेवरचंदजी) छठा भाग, पृ. 2713, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org