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________________ अठारहवां शतक : उद्देशक 6] [705 [4] इसी प्रकार इसी अभिलाप द्वारा, मजीठ लाल है; हल्दी पीली है ; शंख शुक्ल (सफेद) है, कुष्ठ (कुटु)-पटवास (कपड़े में सुगन्ध देने की पत्ती) सुरभिगन्ध (सुगन्ध) है, मृतकशरीर (शव) दुर्गन्धित है, नीम (निम्ब) तिक्त (कड़वा) है, संठ कटुय (तीखी--चरपरी) है, कपित्थ (कविठ) कसैली है, इमली खट्टी है ; खांड (शक्कर) मथुर है; बज्र कर्कश (कठोर) हैं; नवनीत (मक्खन) मृदु (कोमल) है, लोह भारी है; उलुकपत्र (बोरड़ी का पत्ता) हल्का है, हिम (बर्फ) ठण्डा है, अग्निकाय उष्ण (गर्म) है, तेल स्निग्ध (चिकना) है। किन्तु नैश्त्रयिक नय से इन सब में पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्श हैं। 5. छारिया णं भंते० पुच्छा। गोयमा ! एत्थ दो नया भवंति, तं जहा–नेच्छइयनए य वावहारियनए य / वावहारियनयस्स लुक्खा छारिया, नेच्छइयनयस्स पंचवण्णा जाव अढ फासा पन्नता। [5 प्र.] भगवन् ! राख कितने वर्ण वाली है ?, इत्यादि प्रश्न ? [5 उ. गौतम ! व्यावहारिक नय से राख रूक्ष स्पर्श वाली है, और नैश्चयिक नय से राख पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और पाठ स्पर्श वाली है। विवेचन-प्रत्येक वस्तु के वर्णादि का व्यावहारिक एवं नैश्चयिक नय की दृष्टि से निरूपणव्यवहारनय लोकव्यवहार का अनुसरण करता है / वस्तुत: व्यवहारनय व्यवहारमात्र को बताने वाला है। वह वस्तु के अनेक अंशों में से उतने ही अंश को ग्रहण करता है, जितने अंश से व्यवहार चलाया जा सकता है, शेष अन्य अंशों के प्रति वह उपेक्षा भाव रखता है / नैश्चयिकनय वस्तुके मूलभूत स्वभाव को स्वीकार करता है / इसी दृष्टि से यहां मुड़, भ्रमर, शुकपिच्छ, राख, तथा मजीठ, हल्दी आदि के विषय में दोनों नयों को अपेक्षा से उत्तर दिया गया है। उदाहरणार्थ भौंरा और हल्दी व्यवहारनय की दृष्टि से काला और पीली है किन्तु निश्चय नय की दृष्टि से उनमें पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस प्रोर पाठ स्पर्श हैं।' कठिन शब्दार्थ- फाणियगुले = गीला गुड़ = राब / सुपिच्छे-तोते की पांख / छारिया = राख / गोड्डे = गौल्य अर्थात्-गौल्य (मधुर) रस से युक्त / उलयपत्ते = दो रूप दो अर्थ-(१) उलुकपत्र = बेर के पत्ते (2) उलूकपत्र = उल्ल के पत्र यानी पंख / 2 / परमाणु पुद्गल एवं द्विप्रदेशी स्कन्ध आदि में वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्शनिरूपरण 6. परमाणुपोग्गले णं भंते ! कइवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते ? गोयमा ! एगवण्णे एगगंधे एगरसे दुफासे पन्नत्ते। [6 प्र.] भगवन् ! परमाणुपुद्गल कितने वर्ण वाला यावत् कितने स्पर्शवाला कहा गया है ? [6. उ.] गौतम ! वह एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दो स्पर्श वाला कहा गया है। 1. भगवतीसूत्र (प्रमेयचन्द्रिका टीका) भा. 13, 68-71 2. (क) भगवतीसूत्र—विवेचन (पं. घेवरचन्दजी) भा. 6, पृ. 2709 (ख) भगवतीसूत्र (प्रमेय चन्द्रिका टोका) भा. 13, पृ. 70 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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