________________ अठारहवां शतक : उद्देशक 5] [701 चौबीस दण्डकों में वर्तमानभव और आगामीभव की अपेक्षा प्रायुष्यवेदन का निरूपण 8. नेरइए णं भंते ! अणंतरं उव्वट्टित्ता जे भविए पंचिदियतिरिक्खाजोणिएसु उववज्जित्तए से णं भंते ! कयरं आउयं पडिसंवेदेति ? गोयमा ! नेरइयाउयं पडिसंवेदेति, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाउए से पुरओ कडे चिट्टइ। [8 प्र.) भगवन् ! जो नैयिक मर कर अन्तर-रहित (सीधे) पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च-योनिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, भगवन् ! वह किस प्रायुष्य का प्रतिसंवेदन करता है ? [8 उ.] गौतम ! वह नारक नैयिक-ग्रायुष्य का प्रति-संवेदन (अनुभव) करता है, और पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक के अायुष्य के उदयाभिमुख-(पुर :कृत) करके रहता है। 9. एवं मणुस्सेसु वि, नवरं मणुस्साउए से पुरतो कडे चिट्ठति / [6] इसी प्रकार (अन्तररहित) मनुष्यों में उत्पन्न होने योग्य जीव के विषय में समझना चाहिए। विशेष यह है कि वह मनुष्य के प्रायुष्य को उदयाभिमुख करके रहता है / 10. असुरकुमारे गं भंते ! अणंतरं उच्चट्टित्ता जे भविए पुढविकाइएसु उववज्जित्तए० पुच्छा। गोयमा ! असुरकुमाराउयं पडिसंवेदेति, पुढविकाइयाउए से पुरतो कडे चिट्ठइ / [10 प्र.] भगवन् ! जो असुरकुमार मर कर अन्तररहित पृथ्वी कायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य है, उसके विषय में पूर्ववत् प्रश्न ? [10 उ.] गौतम ! वह असुरकुमार के प्रायुष्य का प्रतिसंवेदन (अनुभव) करता है और पृथ्वीकायिक के आयुष्य को उदयाभिमुख करके रहता है / 11. एवं जो जहि भविओ उवधज्जित्तए तस्स तं पुरतो कडं चिट्ठति, जत्थ ठितो तं पडिसंवेदेति जाव वेमाणिए / नवरं पुढविकाइनो पुढविकाइएसु उववज्जंतओ पुढविकाइयाउयं पडिसंवेदेति, अन्न य से पुढविकाइयाउए पुरतो कडे चिट्ठति / एवं जाब मणुस्सो सट्ठाणे उवयातेयब्वो, परट्ठाणे तहेव / [11] इस प्रकार जो जीव जहां उत्पन्न होने के योग्य है, वह उसके आयुष्य को उदयाभिमुख करता है, और जहां रहा हुया है, वहां के आयुष्य का वेदन (अनुभव) करता है / इस प्रकार यावत् वैमानिक तक जानना चाहिए / विशेष यह है कि जो पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकायिकों में ही उत्पन्न होने योग्य है, वह अपने उसी पृथ्वीकायिक के आयुष्य का वेदन करता है और अन्य पृथ्वीकायिक के प्रायुष्य को उदयाभिमुख (पुरःकृत) करके रहता है। इसी प्रकार यावत् मनुष्य तक स्वस्थान में उत्पाद के विषय में कहना चाहिए / परस्थान में उत्पाद के विषय में पूर्वोक्तवत् समझना चाहिए। विवेचन-कौन किस प्रायु का वेदन करता है ?--सू. 8 से 11 तक में एक सैद्धान्तिक तथ्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org