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________________ 694] व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [4-2 उ.] गौतम ! जिस राशि में से चार-चार निकालने पर, अन्त में चार शेष रहें, वह राशि है-'कृतयुग्म' / जिस राशि में से चार-चार निकालते हुए अन्त में तीन शेष रहें, वह राशि 'त्योज' कहलाती है। जिस राशि में से चार-चार निकालने पर अन्त में दो शेष रहें, वह राशि द्वापरयुग्म' कहलाती है। और जिस राशि में से चार-चार निकालते हुए अन्त में एक शेष रहे, वह राशि 'कल्योज' कहलाती है। इस कारण से ये राशियाँ ('कृतयुग्म' से लेकर) यावत् 'कल्योज' कही जाती हैं। विवेचन-युग्म तथा चतुर्विध युग्मों को परिभाषा—गणितशास्त्र की परिभाषा के अनुसार समराशि का नाम युग्म है और विषमराशि का नाम 'प्रोज' है। यहाँ जो राशि (युग्म) के चार भेद कहे गए हैं, उनमें से दो युग्म राशियाँ हैं और दो ओज राशियाँ हैं। तथापि यहाँ युग्म शब्द शास्त्रीय पारिभाषिक होने से युग्म शब्द से चारों प्रकार की राशियाँ विवक्षित हुई हैं। इसलिए चार युग्म अर्थात्-चार राशियाँ कही गई हैं। अगले प्रश्न (4-2) का आशय यह है कि कृतयुग्म आदि ऐसा नाम क्यों रखा गया ? इन चारों पदों का अन्वर्थक नाम किस प्रकार से है ? जिस राशिविशेष में से चार-चार कम करते-करते अन्त में चार ही बचें, उसका नाम कृतयुग्म है। जैसे 16, 32 इत्यादि, इन संख्याओं में से चार-चार कम करने पर अन्त में चार ही बचते हैं। जिस राशि में से चार-चार घटाने पर अन्त में तीन बचते हैं, वह राशि ज्योज है, जैसे 15, 23 इत्यादि संख्याएँ। जिस राशि में से चार-चार कम करने पर अन्त में दो बचते हैं, वह राशि द्वापर-युग्म राशि है, जैसे—६-१० इत्यादि संख्या / जिस राशि में से चार-चार कम करने पर अन्त में एक बचता है, वह राशि 'कल्योज' कहलाती है, जैसे-१३-१७ इत्यादि / कृतयुग्म आदि सब पारिभाषिक नाम हैं / ' चौबीस दण्डक, सिद्ध और स्त्रियों में कृतयुग्मादिराशिप्ररूपणा 5. नेरतिया णं भंते ! कि कडजुम्मा तेयोया दावरजुम्मा कलिओया ? गोयमा ! जहन्नपए कडजुम्मा, उक्कोसपए तेयोया, अजहन्नमणुक्कोंसपदे सिय कडजुम्मा जाव सिय कलियोया। [5 प्र.] भगवन् ! नैरयिक क्या कृतयुग्म हैं, त्योज हैं, द्वापरयुग्म हैं, अथवा कल्योज हैं ? [5 उ.] गौतम! वे जघन्यपद में कृतयुग्म हैं, उत्कृष्ट-पद में त्योज हैं, तथा अजघन्योत्कृष्ट (मध्यम) पद में कदाचित् कृतयुग्म यावत् कदाचित् कल्योज हैं। 6. एवं जाव थणियकुमारा। [6] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक (के विषय में भी) (कहना चाहिए।) 7. वणस्सतिकातिया णं० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नपदे अपदा, उक्कोसपदे अयदा, अजहन्नमणुक्कोसपदे सिय कडजुम्मा जाव . सिय कलियोगा। 1. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्र 745 (ख) भगवतीसूत्र (प्रमेयचन्द्रिका टीका) भा. 13, पृ. 17-18 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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