________________ 686 [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [13 प्र.] भगवन् ! प्रयोगबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? . [13 उ.] माकन्दिकपुत्र ! वह भी दो प्रकार का कहा गया है। यथा--शिथिल-बन्धन-बन्ध और गाढ़ (धन) बन्धन-बन्ध / 14. भावबंधे णं भंते ! कतिविधे पन्नते ? मागंदियपुत्ता ! दुविहे पत्नत्ते, तं जहा - मूलपगडिबंधे य उत्तरपगडिबंधे य / [14 प्र.] भगवन् ! भावबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? [14 उ.] माकन्दिकपुत्र ! वह दो प्रकार का कहा गया है। यथा-मूलप्रकृतिबन्ध और उत्तरप्रकृतिबन्ध / 15. नेरइयाणं भंते ! कतिविहे भावबंधे पन्नत्ते? मागंदियपुत्ता ! दुविहे भावबंधे पन्नत्ते, तं जहा-मूलपगडिबंधे य उत्तरपगडिबंधे य / [15 प्र.] भगवन् ! नै रयिक जीवों का कितने प्रकार का भावबन्ध कहा गया है ? [15 उ.] माकन्दिकपुत्र ! उनका भावबन्ध दो प्रकार का कहा गया है / यथा-मूल-प्रकृत्तिबन्ध और उत्तर-प्रकृति-बन्ध / 16. एवं जाव वेमाणियाणं / [16] इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक (के भावबन्ध के विषय में कहना चाहिए / ) 17. नाणावरणिज्जस्स गं भंते ! कम्मस्स कतिविहे भावबंधे पन्नत्ते ? मागंदियपुत्ता! दुविहे भावबंधे पन्नत्ते, तं जहा–मूलपगडिबंधे य उत्तरपडिबंधे य / [1.7 प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म का भावबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? [17 उ. माकन्दिकपुत्र ! ज्ञानावरणीय कर्म का भावबन्ध दो प्रकार का कहा गया है / यथा--मूलप्रकृतिबन्ध और उत्तरप्रकृतिबन्ध / 18. नेरइयाणं भंते ! नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स कतिविधे भावबंधे पण्णत्ते ? मागंदियपुत्ता! दुविहे भावबंधे पन्नत्ते, तं जहा–मूलपगडिबंधे य उत्तरपगडिबंधे य / [18 प्र.] भगवन् ! नरयिक जीवों के ज्ञानावरणीय कर्म का भावबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? [18 उ.) माकन्दिकपुत्र ! उनके ज्ञानावरणीय कर्म का भावबन्ध भी दो प्रकार का कहा गया है / यथा---मूल-प्रकृति-बन्ध और उत्तर-प्रकृति-बन्ध / 19. एवं जाव वेमाणियाणं / 16] इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक के ज्ञानावरणीयकर्मजनित भावबन्ध के विषय में कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org